Saturday, October 13, 2012

मातृ भूमि के प्रति

आज तेरा , कल है तेरा ,
जिन्दगी का पल - पल तेरा ।

स्वेद से भीगा हुआ तन ,
रक्त से लथपथ बदन  ।
आंसुओ की बूंद बनकर, 
बह न जाये क्यो तन। 

जिन्दगी तुमने दिया है 
अन्न जल से सींच कर ।
यह ऋण कैसे उतारू,
माँ मै तुझे भूलकर ।।

इंसान मिट्टी का बना है ,
प्राण प्रिय परमात्मा का ।
रक्त की बुँदे है जल कण 
सांस वायु अत्मा का ।।

जिन्दगी हर दिन नया स्वर,
कमल दल गत जल तरल है ।
लुडक जाये कब पता क्या ,
नयन जल सदृश विरल है ।।

कौन जाने किस घडी,
यमराज का पैगाम आये।
छुट जाये जगत यह ,
मोह कितना भी सताये ।।

याद करता है जमाना,
छोड़ जाये जो निसानी ।
लहू की न परवाह करते,
है बहाते समझ पानी।।

धन्य होता लहू मेरा 
निजदेश जो कम आये ।
भारती मै गर्व से,
निज शीश  सहज तुझे चढ़ाता ।।
मातृ भूमि के प्रति 

                           राजेंद्र रामनाथ मिश्र