आज तेरा , कल है तेरा ,
जिन्दगी का पल - पल तेरा ।
स्वेद से भीगा हुआ तन ,
रक्त से लथपथ बदन ।
आंसुओ की बूंद बनकर,
बह न जाये क्यो तन।
जिन्दगी तुमने दिया है
अन्न जल से सींच कर ।
यह ऋण कैसे उतारू,
माँ मै तुझे भूलकर ।।
इंसान मिट्टी का बना है ,
प्राण प्रिय परमात्मा का ।
रक्त की बुँदे है जल कण
सांस वायु अत्मा का ।।
जिन्दगी हर दिन नया स्वर,
कमल दल गत जल तरल है ।
लुडक जाये कब पता क्या ,
नयन जल सदृश विरल है ।।
कौन जाने किस घडी,
यमराज का पैगाम आये।
छुट जाये जगत यह ,
मोह कितना भी सताये ।।
याद करता है जमाना,
छोड़ जाये जो निसानी ।
लहू की न परवाह करते,
है बहाते समझ पानी।।
धन्य होता लहू मेरा
निजदेश जो कम आये ।
भारती मै गर्व से,
निज शीश सहज तुझे चढ़ाता ।।
मातृ भूमि के प्रति
राजेंद्र रामनाथ मिश्र
जिन्दगी का पल - पल तेरा ।
स्वेद से भीगा हुआ तन ,
रक्त से लथपथ बदन ।
आंसुओ की बूंद बनकर,
बह न जाये क्यो तन।
जिन्दगी तुमने दिया है
अन्न जल से सींच कर ।
यह ऋण कैसे उतारू,
माँ मै तुझे भूलकर ।।
इंसान मिट्टी का बना है ,
प्राण प्रिय परमात्मा का ।
रक्त की बुँदे है जल कण
सांस वायु अत्मा का ।।
जिन्दगी हर दिन नया स्वर,
कमल दल गत जल तरल है ।
लुडक जाये कब पता क्या ,
नयन जल सदृश विरल है ।।
कौन जाने किस घडी,
यमराज का पैगाम आये।
छुट जाये जगत यह ,
मोह कितना भी सताये ।।
याद करता है जमाना,
छोड़ जाये जो निसानी ।
लहू की न परवाह करते,
है बहाते समझ पानी।।
धन्य होता लहू मेरा
निजदेश जो कम आये ।
भारती मै गर्व से,
निज शीश सहज तुझे चढ़ाता ।।
मातृ भूमि के प्रति
राजेंद्र रामनाथ मिश्र