Sunday, January 26, 2014

आलस मत कर ।

कुछ भी कर पर आलस मत कर ।
आलस्य दुश्मन है मानव का 
मन की गति को स्थिर करता
तन की शक्ति क्षीण बनाता
रस भर तन-मन-जीवन मे
संकल्प- विकल्पो से उठकर
कुछ भी कर पर आलस मत कर ।।

डरकर जीना कायरता है
मानव -मन उच्छृंखल है
जिधर मुड़ा बस उधर जुड़ा
मति को मन पर भारी बनकर
जीवन मे गति का मिश्रणकर
कुछ मी कर पर आलस मतकर ।।

चमके सूरज चाँद सितारे
गति के है प्रतिक ये सारे
गति विन जीवन मे दुर्गति है
निश-दिन प्रगति पर चलकर
प्रतिक्षण प्रतिपल आगेको बढ़
कुछ भी कर पर आलस मत कर ।।

त्याग सभी शंसय है जितने
देख गगन मे तारे कितने
तारो सा तू भी चमकेगा
प्रगति पथ पर तू झलकेगा
संशय छोड़ दृढ़ निश्चय कर
कुछ भी कर पर आलस मत कर ।।
             
                                              राजेन्द्र मिश्रा

Sunday, January 19, 2014

इतना करती क्यो प्यार मुझे Itna karati kyo pyar munjhe

इतना करती क्यो प्यार मुझे ।

तुम त्रिवेणी सी पावन हो
हम गाँवो के गंदे नाले ।
सदगंधयुक्त शीतलजल तुम
मधुशाला के हम मधु प्याले।
तुम कितनी चंचल ,हम शांत शुभे !
इतना करती क्यो प्यार मुझे ।।

तुम स्वर्गलोक की सुरबाला
हम मृत्युलोक के वासी है।
तुमको गलबाहो का हार और
हमको प्रिय मथुरा काशी है।
तुम कुसुम-कली,हम काँटे है
इतना करती क्यो प्यार मुझे ।।

तुम चंदन -भीनी खुशबू हो
हम बबूल के फूल प्रिये ।
तुम फैलाती सौरभ चहुँ ओर,
हम काँटो के तीर प्रिये ।
तुम चंचल नयनो वाली हो ,पर
मै शुक्राचार्य प्रिये
इतना करती क्यो प्यार मुझे ।।

तुम  धवल चाँदनी सी निर्मल
मै कालकूट का प्याला हूँ ।
तुम च॓दन सी शीतल हो
मै तप्त अग्नि की ज्वाला हूँ।
मै ग्रीष्म तुम बरसात प्रिये,
तुम आओगी, मै जाऊँगा।
तुमसे कैसे मिल पाऊँगा ।।

                                  राजेन्द्र मिश्रा