कुछ भी कर पर आलस मत कर ।
आलस्य दुश्मन है मानव का
मन की गति को स्थिर करता
तन की शक्ति क्षीण बनाता
रस भर तन-मन-जीवन मे
संकल्प- विकल्पो से उठकर
कुछ भी कर पर आलस मत कर ।।
डरकर जीना कायरता है
मानव -मन उच्छृंखल है
जिधर मुड़ा बस उधर जुड़ा
मति को मन पर भारी बनकर
जीवन मे गति का मिश्रणकर
कुछ मी कर पर आलस मतकर ।।
चमके सूरज चाँद सितारे
गति के है प्रतिक ये सारे
गति विन जीवन मे दुर्गति है
निश-दिन प्रगति पर चलकर
प्रतिक्षण प्रतिपल आगेको बढ़
कुछ भी कर पर आलस मत कर ।।
त्याग सभी शंसय है जितने
देख गगन मे तारे कितने
तारो सा तू भी चमकेगा
प्रगति पथ पर तू झलकेगा
संशय छोड़ दृढ़ निश्चय कर
कुछ भी कर पर आलस मत कर ।।
राजेन्द्र मिश्रा