Thursday, December 31, 2015

नववर्ष मंगलमय हो ।

नववर्ष के प्रभात पर गीत  नया  गाइये।
मुस्करा रहे हैं हम आप मुस्कुराइये ।
मुस्कुरा रही है कली फूल  मुस्कुरा रहे  ।
नववर्ष की  खुशी में  दुख दर्द  भूल जाइए  ।
मुस्कुरा रहे हैं हम आप  मुमुस्कुराइए  ।।

The World Without Fear ,Happy New year.

Nights  are  bright, the  days  are   gay
Birds are  searching for the   hay .
To build  their  beautiful ,cosy nest .

Trees are  swinging ,
Flowers  are  blooming
The Sun is shinning  with
Beautiful and  bright rays.

The  wind is blowing
The birds  are  chirping
Carrying  aroma  over the
Wings everywhere  .

The  year is going  ,
The  year  is coming
Leaving  behind  
Terror  'n ' fear
Everywhere  
Happy New year.
The  world  without Fear.

Saturday, November 7, 2015

पुस्तक का महत्व

पुस्तक का  हमारे  जीवन में  विशिष्ट  स्थान है । पुस्तक  ज्ञान  प्राप्ति  का  साधन है । पुस्तक के  माध्यम से  पढ-लिखकर लोग  अपना  जीवन  सार्थक  बनाते हैं । इसलिए  पुस्तक  को हमरी सच्ची  साथी  कहा  गया है ।  पुराने समय से ही  पुस्तकें  ज्ञान के  संचय का माध्यम  रही हैं । वेद - पुराण , रामायण - गीता  ,बाइबिल  -- कुरान  भी पुस्तक के  रूप में  हमारे  पास  उपलब्ध है ।  लेखक  , साहित्यकार  , कवि  एवं  नाटककार  अपनी कृतियों  को पुस्तक के  रूप में  सजोते हैं  , जिन्हें  पढकर  लोग  ज्ञान  प्राप्त  करते हैं ।  अतः  पुस्तकें  ज्ञान की  गंगा  हैं  ।

Saturday, October 10, 2015

हे ! भ्रमर गीत गा मधुर - मधुर

हे !भ्रमर गीत गा  मधुर - मधुर  ।
मधुसिक्त कंठ से  मधुर गीत,
गतिशील, प्रखर  ,शीतल  समीर
भारत - माॅ का  महिमा -मंडन
भारत -सपूत -उज्ज्वल -भविष्य
हे ! भ्रमर गीत गा मधुर - मधुर  ।।

हिमगिरि  से रामेश्वर  सुदूर
गुजरात से अरुणाचल प्रदेश
भर दे भारत में संगीत  मधुर
कन्या कुमारी  से कश्मीर
हे! भ्रमर गीत गा मधुर - मधुर  ।।

नव वर्ष की स्वर्णिम बेला मे
नव -भारत का हो मृदुल सृजन
जन-जन का जीवन मधुर बने
खुशियों से हो परिपूर्ण वतन ।।

हे ! जगत- नियंता जगदीश्वर
हे ! जगत के जगताधार प्रभो
जग -जीवन सफल बना देना
जन - जन - सुखी संसार प्रभो ।।

भारत  जग -अधिनायक हो
जन-जीवन शक्ति-पुंज प्रखर
हे ! मधुप गीत गा मधुर -मधुर
हे ! भ्रमर गीत गा मधुर -मधुर ।।

Sunday, August 23, 2015

योग का महत्व

योग का मानव जीवन में बहुत महत्व है ।योग के द्वारा हमारा शरीर  ही नहीं अपितु मन भी  स्वस्थ  रहता है । योग साँस  का नियमन  है । योग द्वारा  मनुष्य साॅसों पर  नियंत्रण  कर के दीर्घायुत्व प्राप्त कर सकता है  । योग के  अभ्यास से बुद्धि  प्रखर होती है  । शरीर  बलिष्ठ होती है  । आज  भाग- दौड की दुनिया में  तन तथा  मन दोनों  का स्वस्थ  रहना  आवश्यक है । योग के  द्वारा  उच्च  रक्तचाप  , मधुमेह और डिप्रेशन  जैसी  बीमारियों से बचा जा सकता है ।  लोगों को  बचपन से ही  योगाभ्यास  करने की  आदत  डालनी चाहिए ।योग के  अभ्यास से शारीरिक  शक्ति  बढती है ,खून  साफ  होता है । पाचन क्रिया  सही  रहती है । योगाभ्यास  द्वारा  स्मरण  , चिंतन  ,तर्क  तथा अध्ययन  क्षमता  बढती है ।
  भारत  दुनिया में  योग गुरु  माना जाता है  ।भारत के  प्रधान मंत्री  श्री  नरेन्द्र मोदी  की  पहल पर 21 जून को  विश्व  योग  दिवस के रूप में  मनाया जाने लगा है  ।

Tuesday, August 18, 2015

रोज सबेरे

रोज सबेरे  सूरज की  किरणें,
चुपके से  मेरे  घर आती ,
जादू  भरी  रोशनी से वे
नींद हमारी  दूर भगाती ।।

रोज सबेरे  चिडियाॅ चीं -चीं
करके , अपने  गीत  सुनाती
जादू  भरे गीत के  स्वर से
सुबह  नींद से  हमे  जगाती  ।।

रोज  सबेरे  मम्मी  मेरी
मुझे  नाम  लेकर  के बुलाती
जादू  भरे  मधुर  स्वर  उनके
तंद्रालस को दूर  भगाते ।।

रोज सबेरे  पापा  मेरे
मुझे  उठा  मंदिर  को जाते
'उठ जा विट्टू 'कह करके
मुझे प्रात का  पाठ पढाते  ।।

सुख -दुख सब दुनिया में ही हैं
सुबह  शाम  आते जाते हैं
कोई  खो करके सोता है
कोई  सो करके  खोता है ।।

सुबह  देर तक  जो सोते हैं
बडे  आलसी  वे होते हैं
सुबह  समय से  उठने वाले
जग में  सम्मानित  होते हैं  ।

                                        राजेंद्र प्रसाद मिश्र

Monday, March 2, 2015

तेते पाॅव पसारिये जेती लाबी सौर

तेते पाॅव पसारिये जेती लांबी सौर का अर्थ हैकि हमे अपना पाॅव उतना ही लंबा फैलाना चाहिए जितनी लंबी अपनी चादर हो । मनुष्य के जीवन मे आवश्यकताओ का अंत नही है।उसे  अपने साधन के अनुशार ही कार्य करना चाहिए ।जिस प्रकार हम बाजार जाते है तो अपने खिस्से की अवकात देखकर सामान खरीदते है । उसी प्रकार हमे अपने साधन को देखते हुए ही काम करना चाहिए,अन्यथा पछताना पडता है या कार्य अपूर्ण रह जाता है ।
संसार मे तीन तरह के व्यक्ति होते है- एक ,जो बिना विचारे कार्य प्रारंभ करते है तथा शुरूआत मे ही छोड खडे होते है । दूसरे कार्य ज ल्दीबाजी मे प्रारंभ कर बीच मे छोड देते है ।तीसरे प्रकार के व्यक्ति , जो अपनी परिस्थिति का आकलन करके कार्य प्रारंभ करते है और उसे पूरा करके ही दम लेते है ।अतः हमे अपनी आय तथा व्यय को देखते हुए सूझ - बूझ के साथ कार्य करना चाहिए ।

Saturday, February 21, 2015

हमारे त्योहार (अनुच्छेद)

भारत त्योहारों का देश है। यहाँ अनेक त्योहार मनाये जाते हैं जैसे- होली,  दिवाली, ईद, क्रिसमस,  पतेती इत्यादि।इसके अलावा अलग- अलग ऋतुओं के अलग-अलग त्योहार हैं ।यहाँ दो प्रकार के त्योहार मनाये जाते हैं ।राष्ट्रीय त्योहार तथा धार्मिक त्योहार ।भारत के मुख्य राष्ट्रीय त्योहार स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस तथा गांधी - जयंती हैं। राष्ट्रीय त्योहार पूरे भारत वासी हर्ष और उल्लास से मनाते हैं। सभी धर्मों के अलग त्योहार हैँ परन्तु यहाँ सभी लोग इन्हें आपस में मिल-जुल कर मनाते हैं।लोगों की अलग अलग भाषा, संस्कृति और वेषभूषा है, लेकिन सभी यहाँ भाईचारे के साथ मिलकर रहते व काम करते हैं ।

                       त्योहार  हमारे जीवन में खुशियां लेकर आते हैं।लोगों में भाईचारा तथा मेल मिलाप भी बढता है।देश की अखंडता तथा एकता को भी बल मिलता है।लोगों के मन में उमंग तथा उत्साह का संचार होता है । इस प्रकार त्योहार का हमारे जीवन में बहुत उपयोगी हैं ।
 

Friday, February 13, 2015

परहित सरिस धर्म नहिं भाई ।(अनुच्छेद )

'परहित सरिस धर्म नहिं भाई 'का अर्थ है कि दूसरों की भलाई के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है । जो व्यक्ति दूसरों को सुख पहुचाता है, दूसरो की भलाई कर के प्रसन्न होता है, उसके समान संसार में कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं है । महर्षि दधीचि ने देवराज इंद्र को अपना अस्थि- पंजर दे दिया था, जिसका उपयोग करके इंद ने दानवों का बध किया था । महाराज शिवि ने अपने शरीर का मांस एक निरिह पक्षी की रक्षा के लिए अर्पित कर दिया था।इस तरह दूसरों की भलाई के लिए किए गए कार्य के द्वारा व्यक्ति को पुण्य के साथ - साथ यश भी प्राप्त होता है । परोपकार द्वारा विश्व में एकता तथा मानवता का विकास  होता है । लोग जाति तथा धर्म से ऊपर उठकर एक - दूसरे के करीब आते हैं,  जिससे भाईचारे तथा विश्व वंधुत्व की भावना का विकास होता है । इस तरह दूसरे को सुख देने जैसा नेक कार्य  इस दुनिया में नहीं है तथा दूसरे को पीडा पहुचाने जैसा निषिद्ध कार्य भी इस दुनिया में दूसरा नहीं है ।

Thursday, February 12, 2015

भ्रष्टाचार(अनुच्छेद)

भ्रष्टाचार एक ऐसी सामाजिक कुरीति है जो किसी भी देश या समाज को पतन के गर्त में ले जा सकता है ।जब समाज को राजनैतिक भ्रष्टाचारियो की मदद मिल रही हो , तो वह पंक्ति याद आती है- 'हर शाख पर उल्लू बैठे हो, अनजामे गुलिस्ताँ क्या होगा ।' भ्रष्टाचार रूपी जहर  के प्रभाव से बचने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। आज बडे अधिकारी से लेकर एक सामान्य लिपिक तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं । समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हुआ है जिससे लोगों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं है । देश को इस समय ईमानदार नेता, अधिकारी तथा समाज- सेवक की जरूरत है । वैसे तो बहुत से भ्रष्ट नेता, अधिकारी, तथा कर्मचारी ईमानदारी का ढोग करके जनता के बीच आएगें पर हमें उनसे सावधान रहने की जरूरत है ।सबसे बडी जिम्मेदारी तो उन लोगों की है जो भ्रष्टाचार के शिकार हो रहे हैं।भ्रष्टाचार  से लडाई में और इससे मुक्ति पाने में देरी हो सकती है पर यह असंभव नहीं है । जरूरत है देशवासियों के मनोबल एवं जज्बे की, जो भ्रष्टाचारियो को सबक सिखा सके।समाज, परिवार तथा देश में संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों के विकास पर बल देकर देश से भ्रष्टाचार का उन्मूलन किया जा सकता है ।

जब आए संतोष धन सब धन धूरि समान(अनुच्छेद)

मनुष्य के जीवन में सुख और शांति की शुरुआत संतोष की नीव पर ही होती है ।जब तक व्यक्ति के मन में संतोष नहीं आता तब तक वह सुख का अनुभव कर ही नहीं सकता । व्यक्ति के पास जो कुछ भी अपना है या अपने पास है, उसी में सुख का अनुभव करना संतोष कहलाता है ।मानव की अभिलाषा अनंत है। व्यक्ति उन्हें पाने के लिए प्रयास करता है। इस प्रकार एक के बाद दूसरी इच्छा जन्म लेती है तथा मनुष्य महत्वाकांक्षी हो जाता है। महत्वाकांक्षी व्यक्ति कभी सुखी हो ही नहीं सकता । वह सदैव तनावपूर्ण जीवन जीता हुआ बीमारियों का शिकार होता है । इस तरह संतोष के बिना सुख संभव नहीं होता । बढती महत्त्वाकांक्षा के साथ  अपराध  बढते है  -  जैसे कि  चोरी  ,डकैती, , तस्करी  एवं  भ्रष्टाचार  । जहाँ संतोष है वहाँ लालच का कोई स्थान नहीं ।सुख के लिए व्यक्ति के मन मे त्याग तथा परोपकार का होना आवश्यक है ।किसी कवि ने ठीक  कहा है कि -

                               गोधन ,गज धन ,वाजिधन और रतनधन खान ।
                                जब आए संतोष धन ,सब धन धूरि समान  ।।

Saturday, February 7, 2015

महामंत्र

                                       देवकी-सुत गोविन्दम् वासुदेव जगत्पते ।
                                        देहि मे तनयं कृष्णम् त्वामहम् शरणागता ।।

    संतानहीन दंपति यदि इस मंत्र का सच्ची श्रद्धा से जाप करते हैं,  या किसी आचार्य से करवाते हैं तो भगवान श्रीकृष्ण की
कृपा से उनकी मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है ।
          
                                                                        जय श्री कृष्ण

Wednesday, January 14, 2015

निर्झरिणी

निर्झरिणी बह रही निरंतर
     कंकड पत्थर पर चल-चल कर ।।

नहीं कभी पीछे मुडती है
       सदा अग्रसर ही रहती है
                बादल से जल ले लेकर
                          सागर तक ढोती रहती है
                                      बिना थके काट रही है
                                               पर्वत से सागर का अंतर ।

निर्झरिणी बह रही निरंतर
             कंकड पत्थर पर चल- चल कर ।।

तट की हरियाली ललचाती
          लेकिन उसे रोक न पाती
                    दृढ निश्चय से आगे बढती
                          कल- कल छल- छल का रव करती
                                                  कुसुमित कूल सुमन सुंदर

निर्झरिणी बह रही निरंतर
             कंकड पत्थर पर चल- चल कर ।।

                                                                      राजेंद्र प्रसाद मिश्र

Gazal गजल

जख्म कितना भी हो, दर्द  होता ही नहीं ।
मंजिले  - ए दूर हो या दुर्गम-ए-राह हो ,
साथ संगीन हो, या हाथ मे हाथ हो
पथ पर फूल हो, पर रात सोता ही नही
जख्म कितना भी दो, दर्द तो होता ही नहीं ।।

दैव दुर्दिन दिखाए, या खेलाए खून की होली
साथ मे कफन हो या हाथ रंगीन चोली
रात बीते न बीते सबेरा होता ही नही
जख्म कितना भी हो,  दर्द होता ही नहीं ।।

लडखडाते पाॅव तले खडे हो तीर तीखे
मौत का खौफ नहीं प्राण चीखे न चीखे
आप मानो न मानो, दिल रोता ही नहीं
जख्म कितना भी ही पर दर्द होता ही नहीं ।।
                 
                                                     राजेंद्र मिश्रा

Thursday, January 1, 2015

स्वच्छता की राह पर एक कदम रख करके देखो ।

स्वच्छता की राह पर ,
दो कदम चल करके देखो ।
देश का सम्मान होगा ,
स्वास्थ्य का वरदान होगा,
आत्मबल पर बलदेकर
यह कदम भर करके देखो ।
स्वच्छता की राह पर ,
एक कदम रख करके देखो ।।

देश को अभिमान होगा ,
विदेश में सम्मान होगा,
जिन्दगी के लक्ष्य मे ,
एक कदम भर करके देखो ।
स्वच्छता की डगर पर ,
यह कदम धर करके देखो ।।

                       राजेंद्र प्रसाद मिश्र