प्रातःकाल की पूजा के समय दीप -वर्तिका दक्षिण की ओर हो गई । मेरा मन अशांत सा हो उठा । अनायास मेरे मन मे मेरे पिता श्री के प्रति अनिष्ट की कल्पना जाग उठी । आज एकादशी की पूजा के अन्त मे अनन्त की आरती के समय मोबाइल फोन की घंटी का बजना मेरे मन और भी भयभीत कर दिया । मुझे फोन तक पहुँचने के पहले ही मेरे बड़े पुत्र ने मेरे पिता श्री के चिर निद्रा मे विलीन होने की दुखद घटना का समाचार दिया । मेरे व्यग्र मन ने मुझे ढाढ़स बॅधाया । उनके अंतिम समय मे पास मे न होने की ग्लानि मुझे जीवन भर रहेगी । उसी दिन सायंकाल काशी की पवित्र नगरी मे गंगा जी के पावन तट पर मेरे अग्रज ने मुखाग्नि दी । इस प्रकार उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व मे विलीन हो गया ।
हरि ओम तत् सत् ।
Sunday, September 17, 2017
संस्मरण
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