Sunday, September 17, 2017

संस्मरण

प्रातःकाल की पूजा के  समय दीप -वर्तिका दक्षिण  की ओर हो गई । मेरा मन अशांत  सा हो उठा । अनायास  मेरे मन मे मेरे  पिता श्री  के प्रति  अनिष्ट की  कल्पना  जाग उठी । आज  एकादशी  की पूजा के अन्त मे अनन्त की आरती के  समय  मोबाइल फोन  की घंटी  का बजना  मेरे  मन और  भी  भयभीत  कर दिया । मुझे  फोन  तक पहुँचने के  पहले ही मेरे बड़े  पुत्र  ने  मेरे  पिता  श्री के चिर निद्रा  मे विलीन  होने  की दुखद  घटना  का समाचार  दिया । मेरे  व्यग्र  मन  ने  मुझे  ढाढ़स  बॅधाया ।  उनके अंतिम  समय  मे पास  मे न होने की ग्लानि  मुझे  जीवन  भर रहेगी । उसी दिन  सायंकाल  काशी की पवित्र  नगरी  मे गंगा जी के पावन तट पर मेरे अग्रज ने  मुखाग्नि दी । इस प्रकार उनका पार्थिव शरीर  पंचतत्व  मे विलीन हो गया  ।
    
     हरि ओम तत् सत् ।