Monday, November 25, 2013

गणतंत्र दिवसः

गणतंत्र दिवसःअस्माकं राष्ट्रीय पर्व अस्ति ।गणानां तंत्रम् अथवा शासनं गणन्त्र इति कथ्यते । अस्माकम् देशः जनवरी मासे षड्विशत्याम् तारिकायां गणतंत्र दिवसः मान्यते । अस्मिन दिवसे राष्ट्रपतिः ध्वजारोहणम् करोति । अस्मिन समये विदेशी राष्ट्र पति प्रधानमंत्री वा मुख्यअतिथि भवति । अस्मिन अवसरे सम्पूर्ण देशे सांस्कृतिक कार्य-क्रम आयोज्यते। राज्येषु राज्यपालः ध्वाजारोहणं करोति । विद्यालयेषु खेल-स्पर्धा सांस्कृतिक कार्यक्रमः च भवति । सैनिकैःअपि विभिन्न कार्यक्रमाः प्रस्तुवन्ते । एतत् अस्माकम् गौरव दिवसः अपि अस्ति ।

Friday, November 22, 2013

मेरी चाँद यात्रा (निबंध) Meri chand yatra

प्रातःकाल का समय था ।मेरे फोन की घंटी बजी । मै अभी बिस्तर पर था। घंटी की आवाज सुन सोचने  लगा, किस नामुराद ने नीद मे खलल डाला । बेमन से रिसीवर उठाया । सामने से आवाज आई- "मै इसरो से रजनीकांत सुब्रह्मन्यम बोल रहा हू । आप की काबिलियत को देखकर आप को चाँद पर जाने वाले दल मे सम्मिलित किया गया है।मुझे उम्मीद है कि आप यह पेशकश नही ठुकराएगे ।" मेरी खुशी का ठिकाना न रहा ।मानो मुझे पंख लग गये हो। मैने
कहा - "आप की आज्ञा सिरोधार्य है।"
                        दूसरे दिन से ही तैयारी प्रारंभ कर दी। रिश्तेदरो तथा मित्रो का  ताँता लग गया । कुछ  लोग तो इस लिए आते थे कि शायद मै लौटू या न लौटू।
देर रात तक यही बाते चलती रहती थी । देखते ही देखते पंद्रह दिन कैसे बीत गये पता ही न चला ।अंत मे वह स्वर्णिम दिवस आ गया जिस दिन हमे प्रस्थान करना था । अंत मे दिन के दो बजकर पैतालिस मिनट पर हमारा यान अपनी ऐतिहासिक यात्रा पर निकल गया ।हमारी खुशी का ठिकाना नही था ।
                        यान के प्रस्थान के थोडी देर बाद ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे कलेजा मुँह को आ गया । मि- सुब्रह्मन्यम ने हमे बताया कि यात्रा के प्रथम चरण मे थोडे समय तक ऐसी तकलीफ होगी बाद मे सब कुछ सहज हो जाएगा ।डाँ पांडेय जो हमारे पुराने मित्र भी है , ने बयाया कि यहाँ हमारा जिस प्रकार का खान पान है उससे हमे किसी प्रकार की समस्या नही हो सकती । वैसे भी हमे चिन्ता करने की आवश्यकता नही है क्योकि यह हमारा इतना महत्त्वपूर्ण मिशन हैकि हमे सोचने का समय ही नही मिलेगा । अब तक हमारी यात्रा का पहला चरण बीत गया था ।हमारी बात पृथ्वी के वैज्ञानिको से हुई ।अब हम वातावरण को पार कर चुके थे ।यह हमे तब मालूम हुआ जब हमारे पाव उखडने लगे, हमारा भार कम होने लगा ।हम अपने यान के अंदर स्थिर नही थे, बल्कि उड सकते थे। मै सोच रहा था काश ! हम जमीन पर भी ऐसे ही उड पाते । बरबस ही मन पृथ्वी पर पहुँच गया ।मन जमीन पर मित्रो तथा संबंधियो के साथ घूमने लगा।
                         मन तरंगित हो रहा था ।अचानक आवाज कानो मे पडी ।वातावरण की अनुपस्थिति के कारण हम बिना इयर फोन के बात कर नही सकते थे।अमिताभ जी ने मेरा ध्यान आकर्षित किया ।मेरा ध्यान टूट गया ।मेरा मन पृथ्वी से चंद्रयान मे वापस आ गया । हमने अपनी खुराक लिया ।हम खुराक मे टैबलेट तथा एनर्जी युक्त पेयपदार्थ लिए । आराम करने के लिए आराम कुर्सी से पट्टा बाँध लिया। अर्धनिद्रा मे आराम कर रहा था । अचानक कान मे हार्न सा बजा ।हडबडा कर मै बैठ गया ।
                         हमारा यान  चंद्र पर उतरने वाला था ।यान चंद्र की परिक्रमा करने लगा । हमारे सभी साथी  यान के पैनल पर टकटकी लगाये थे । हमारा यान  पैसठ अंश के कोणपर उतरने लगा । यान का एक हिस्सा चंद्रकी परिक्रमा करता रहा । दूसरा चंद्र की तरफ बढने लगा । थोडी देर बाद हमारा यान चंद्र की सतह पर था । सबसे पहले डाँ- सुब्रह्मण्यम ने अपना दाँया पैर रखा । जैसे ही उन्होने अपना  बाँया पैर रखा,उनका पैर पाँच छः कदम दूर पडा । इससे ज्ञात हुआ कि चंद्र पर गुरूत्व बल पृथ्वी की अपेक्षा कम है । हमारे दो साथी चाँद की परिक्रमा कर रहे थे ,बाकी लोग अब चाँद की सतह पर थे ।यह हमारे लिए बहुत गौरव का क्षण था । सबसे पहले हमने चंद्र की सतह का फोटोग्राफ लिया ।चंद्रमा का सतह उबड-खाबड है। कही गहरे गड्ढे तो कही ऊँचे पहाड है । चंद्रतल पर चलना बडा जोखिम भरा काम है । कदम यहाँ रखो तो वहाँ पडता है । भारतीय समय के अनुशार हमारा यान पाँच बजकर बीस पहुचा था । दो धंटे यूँ ही बीत गए । सुबह का समय था , तापमान शून्य से बहुत नीचे था पर स्पेश सूट के कारण हमेठंड नही लग रही थी,बरना हम वही सदा के लिए बरफ बन जम जाते । अब हम वहाँ विभिन्न सैपल इकट्ठा करना पारंभ किया ।हमने कई जगह से मिट्टी के अलग - अलग नमने इकट्ठा किया ।वहाँ पर स्वचालित यंत्र कैमरे तथा रोबोट स्थापित किए ।
                          शाम का समय हो चुका था ।दिन की भयंकर गरमी ढलते सूरज के साथ तेजी से कम होने लगी ।हम लोगो को तापमान का ज्ञान यंत्रो द्वारा ही भो रहा था । रात का दश बज रहे होगे, हमे आकाश मे  तश्तरी नुमा कोई चीज उडती हुई दिखाई दी। वह हमारी तरफ ही बढ रही थी परंतु थोडी देर बाद उसकी दिशा बदल गई और वह दूसरी तरफ उड गयी ।हम उसकी तस्वीर लेना नही भूले । शायद यह किसी देश द्वरा रखा हुआ यंत्र रहा हो । सुबह से लगातार  काम मे ही लगे होने कारण हम लोग बुरी तरह थक चुके थे । भोजनादि लेने के बाद अंब हम तरोताजा होकर  अपने यान के पास पहुचे । यान का निरिक्षण कार्य पारंभ कर दिया गया । निरिक्षण कार्य मे दो घंटे का समय लगा ।यान का एक हिस्सा चाँद का चक्कर लगा रहा था । अब तक हमारा मिशन सफल रहा ।
         हमने चंद्रतल पर अपना राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया। साईबाबा, दुर्गाजी, तथा बजरंगबली की तस्वीरे भी रखा ।पूरे चौबीस घंटे बाद यान वापस उडान भरने के लिए तैयार था ।हम लोग यान मे सवार हो गए । यान के ऊपरी हिस्से के साथ परिक्रमा करता भाग आकर जुड गया । यान विजली की गति से उड रहा था । अब हमारी उत्सुकता बढने लगी । हम पृथ्वी पर पहुँचने के लिए उतावले हो रहे थे । लंबी थकान के बाद हम राहत महसूस कर रहे थे ।हम गहरी नीद मे सो गए । हमे एक ही चिन्ता सता रही थी कि हम सकुशल धरती पर पहुँच जाए । अंत मे वह शुभ दिन आ ही गया जिसकी हमे प्रतिक्षा थी ।हमारा यान पृथ्वी की कक्षा मे पहुँच चुका था  ।
            शाम सात बजे हमारा यान श्री हरिकोटा के रिसर्च सेंटर पर उतरा ।हमारे स्वागत के लिए विशाल जनमेदनी उपस्थित थी । हमारा भब्य स्वागत किया गया । यह यात्रा  हमारे जीवन की विस्मरणीय यात्रा है ।

Thursday, November 21, 2013

जीवन - मूल्य Value of life

आज दौड-भाग की जिन्दगी तथा बढती आवश्यकता के कारण लोग जीवन मूल्यो की अवगणना कर रहे है।सत्य निष्ठा सदाचार तथा कर्तब्य परायणता आदि जीवन मूल्यो का लोप हो रहा है। सत्य ऐसा जीवन मूल्य है जो परेशान हो सकता है परन्तु पराजित नही होता । अपने कर्तब्य को निष्ठापूर्वक निभाने पर सफलता अवश्य मिलती है ।सदाचार द्वारा व्यक्ति सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ।जीवन मूल्यो का संचय ही नही संरक्षण भी आज आवश्यक हो गया है।
आज लोगो मे इंसानियत नही रह गयी है। इसका मुख्य कारण यह है कि लोग जीवन मूल्यो की अहमियत नही समझते है । समाज मे इंसानियत के अभाव मे संवेदना नही रह गयी है।लोग एक दूसरे के सुख दुख मे सहभागी बनने से कतराते है ।  सच्चे समाज के निर्माण के लिए जीवन मूल्यो को बनाए रखना आज की सबसे बडी आवश्यकता है ।

       अंपने अंतःमन की आवाज सुनकर कर्तब्य पथ पर बढना चाहिए ।कठिनाई या समस्या का समाधान न होने पर , कर्तब्य पथ से विमुख होना सिद्धांत के खिलाफ है ।यहीं से जीवन मूल्यो को छोडने न छोडने की बात पैदा होती है । गौतम बुद्ध, विवेकानंद, महावीर इत्यादि महापुरुष यदि संकट के समय विचलित हो गए होते तो उनका नाम इतनी श्रद्धा से न लिया जाता ।

Monday, November 18, 2013

भुलाना नही चाहिए ।

माँ के प्यार को
पिता के दुलार को
गुरू के ज्ञान को
दोस्त के उपकार को
           भूलना नही चाहिए ।

Sunday, November 17, 2013

किसका किसमे मन लगता है?

बच्चो का खेल मे,
जवानो का मेल मे,
बूढो का भक्ति मे,
पहलवानो का शक्ति मे
                      मन लगता है।

विद्यार्थियो का स्कूलमे
तितलियो का फूल  मे
कोयल का गान मे
किसान का धान मे
                           मन लगता है।
खिलाडियो का जीत मे
रसिक का संगीत मे
मनचलो का मीत मे
                            मन लगता है ।

राजेन्द्र प्रसाद मिश्र

Saturday, November 9, 2013

माँ की बेबशी Helplessness of a mother

बहुत पहले की बात है,
अफ्रीका गुलाम था गोरो का
गोरे उन्हे गुलाम समझते थे
जानवरो की तरह खरीदते,
तथा बेचते थे बाजारो मे ।

एक दिन एक गोरा एक माँ को,
उसके तीन बच्चो के साथ ,
बेचने लाया ।
बडे बेटे की डील-डौल देख,
एक गोरेने झट खरीद लिया ।

माँ के देखते-देखते,
और दोनो बेटे बिक गये
माँ रोई नही,
ऐसा लगा वह वर्षो से
सोई नही।

माँ की छटपटाहट का,
क्या ? वर्णन करू ।
बेबश माँ की दशा,
हथेली पर रखे दिल-सी थी ।

                           राजेंद्र प्रसाद मिश्र

Saturday, November 2, 2013

दीर्घायु बनने का मंत्र - (जिजीविषा)

एक व्यक्ति जीवन मे खूब धन कमाया । वह भक्षाभक्ष माँस- मदिरा का सेवन करता।इसके लिए उसे जीवो की हत्या करनै मे कोई संकोच नही थी। इस तरह क्ई वर्ष बीत गए । एक बार वह बहुत बीमार पड गया। डाक्टरो, वैद्यो ने उसे ठीक करने का बहुत  प्रयास किया पर वह ठीक न हुआ।अंत मे उसने अपनी पत्नी तथा बच्चो को बुलाकर कहा- " मै मरना नही चाहता , मेरे शव को सभाँलकर रखना। किसी अच्छे ताँत्रिक से उसमे पुनः प्राण फूँकवा देना।"
       पत्नी तथा बच्चो ने वैसाही किया। मरणोपरांत शव सुरक्षित रखा गया । कुछ दिनो बाद एक संत आए।सारी बात सुनकर संत ने कहा -सबसे पहले हमे यह देखना होगा कि वह जीव कहाँ पैदा हुआ है।उस जीव को उस शरीर से निकालकर इस शरीर मे डालना पडेगा। इसके लिए उस शरीर की हत्या करनी पडेगी। यह पाप मै नही कर सकता। पत्नी ने कहा -यह काम मै करूगी। संत ने कहा- तुम्हारे पति का पुनर्जन्म इसी बगीचे मे एक शुक- शावक के रूप मे हुआ है, जो अभी पिछले हप्ते अंडे से बाहर आया है।  वह उड नही सकता पर फुदक  सकताहै। खुश होते हुए बोली - तब तो उसे मारना और भी आसान हो जाएगा।  पत्नी सीढी लेकर बगीचे मे पहुच गयी।सीढी के सहारे घोसले तक पहुँचकर जैसेही शिशु की गर्दन पकडना चाहा वह फुदककर समीप की डाल पर चला गया। भयभीत शावक जान बचाने के लिए एक डाल से दूसरे डाल पर फुदकता रहा। यह देख संत ने कहा- देवि इसी तरह तुम्हारे पति मृत्यु से डरकर मरना नही चाहते थे। जीव अपने कर्मो का फल भोगने के लिए दूसरा जन्म लेता है।
   मनुष्य को दीर्घायु होने के लिए वेद- विदित नियम- हितभुक, मितभुक तथा ऋतभुक का पालन करना चाहिए। संत की बात सुनकर सबका भ्रम दूर हो गया।