हिंद है हमारा ! हिन्दोस्ताँ हमारा !
प्राणों से बढ़कर प्यारा गुलसितां हमारा ||
मरना पड़े अगर यदि सौ बार जन्म लेंगे ,
जीवन की सारी ख़ुशियाँ कुर्बान हम कर देंगे ||
नदियाँ यहाँ हैं बहतीं कल- कल निनाद करती,
पावन धरा के तन में संचार रक्त करती ||
खाकर के अन्न जिसका हम सब पले हुए हैं ,
मिटटी की जिसकी खुशबू तन-मन में है हमारे ||
मेरे जिगर का टुकड़ा कहना नहीं मुनासिब ,
यह हृद्य है हमारा ,यह जिगर है हमारा || प्राणों से बढ़कर...........
जिसकी सुस्मित धरा धन-धान्य से भरी है ,
पल्लवित-कुसुमित भूमि सुन्दर मनोहारी है ||
सदियों से खड़ा हिमालय ,गुणगान कर रहा है ,
पद-तल में सागर जिसका पद-प्रक्षालन कर रहा है ||
शत कोटि जन जहाँ पर मस्तक झुका रहे हैं ,
" सरताज हिंद मेरा " नारे लगा रहे हैं ||
शत-शत प्रणाम मेरा ,नत-शिर नमन हमारा ,
तन-मन से बढ़कर प्यारा ,गुलसितां हमारा ||
हिंद है हमारा ! हिन्दोस्ताँ हमारा !
प्राणों से बढ़कर प्यारा गुलसितां हमारा ||
राजेंद्र रामनाथ मिश्र