Sunday, March 27, 2011

गुलसितां हमारा

हिंद है हमारा !   हिन्दोस्ताँ हमारा !
प्राणों से बढ़कर प्यारा गुलसितां हमारा ||

 मरना पड़े अगर यदि सौ बार जन्म लेंगे ,
 जीवन की सारी ख़ुशियाँ  कुर्बान हम कर देंगे ||
 नदियाँ यहाँ हैं  बहतीं कल- कल निनाद करती,
 पावन धरा के तन में संचार रक्त करती  ||

 खाकर के अन्न जिसका हम सब पले हुए हैं ,
 मिटटी की जिसकी खुशबू तन-मन में है हमारे ||

 मेरे जिगर का टुकड़ा कहना नहीं मुनासिब ,
 यह हृद्य है हमारा ,यह जिगर है हमारा  || प्राणों से बढ़कर...........
   
 जिसकी सुस्मित धरा धन-धान्य से भरी है ,
 पल्लवित-कुसुमित भूमि सुन्दर  मनोहारी है ||

 सदियों से खड़ा हिमालय ,गुणगान कर रहा है ,
 पद-तल में सागर जिसका पद-प्रक्षालन कर रहा है ||

 शत कोटि जन जहाँ पर मस्तक झुका रहे हैं ,
 " सरताज हिंद मेरा "   नारे लगा रहे हैं ||

 शत-शत प्रणाम मेरा ,नत-शिर नमन हमारा ,
 तन-मन से बढ़कर प्यारा ,गुलसितां हमारा ||
 हिंद है हमारा !   हिन्दोस्ताँ हमारा !
प्राणों से बढ़कर प्यारा गुलसितां हमारा ||

                                     राजेंद्र रामनाथ मिश्र 

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