Monday, December 1, 2014

Pyar bina koi geet nahi hai.-प्यार बिना कोई गीत नहीं है।

प्यार बिना कोई गीत नहीं है ।
प्यार बिना संगीत नहीं है ।।

जग के सभी चराचर में
आकर्षण का प्यार भरा है
ग्रह - नक्षत्र-उपग्रह- तारे,
सब मे है आकर्षण प्यारे ।

सूरज प्यार धरा से करता,
प्रतिदिन अपनी नवकिरणो से
जगती का आलिंगन करके
जग को प्यार निछावर करता
धरती का वह मीत सही है ।
प्यार बिना कोई गीत नहीं है ।।

नील गगन में पंख खोलकर
गोते खाते हैं पक्षी गण,
प्रणय-गीत को गा-गाकरके
सह देते संसार सृजन में, 
नहीं प्रीति की रीति नई है।
प्यार बिना संगीत नहीं है ।।

रंग- विरंगे पंख खोलकर,
तितली मंडराती फूलों पर
करती मधुरस पान सुहृद का,
पुष्प- पुष्प पर घूम -घूम कर ,
है बिखेरती नव पराग-कण।
फूलों का परांगण करके ,
सह देतती संसार सृजन में ।
तितली का फूलों से बढकर, 
जग में कोई मीत नहीं है
प्यार बिना कोई गीत नहीं है।
प्यार बिना संगीत नहीं है ।।

                                  राजेन्द्र मिश्रा

Thursday, November 27, 2014

Tum kavita ham (mai) sangit priye -तुम कविता हम संगीत प्रिये ।

तुम कविता हम संगीत प्रिये ।
तुम वसंत हम गीत प्रिये  ।।

हम वंशी तुम समीर प्रिये,
तुम प्राण हम शरीर प्रिये ।
तुम राग - द्वेष से परे, हम
माया के बंधन में जकडे ।

तुम वसंत हम शीत प्रिये,
तुम कविता हम संगीत प्रिये ।।

तुम सुंदर सुमन सुगंधित,
हम पतझड से युक्त प्रिये,
तुम कविता की अविरल धारा
हम लय -ताल -वद्ध संगीत प्रिये,

तुम कविता हम संगीत प्रिये ।
तुम वसंत हम गीत प्रिये ।।

                                      राजेंद्र मिश्रा

Thursday, November 13, 2014

लाक्षागृह का निर्माण Lakshagrih ka nirman

दुर्योधन शकुनि की चाल बडी
दोनों ने मिलकर युक्ति गढी   ।
जो गुड देने से मर जाए
उसको क्यों जहर दिया जाए।।

विरोचन को आज्ञा दें दी
लाक्षागृह का निर्माण करो ।
पांडव का काल निकट आया
अंत्येष्टि का इंतजाम करो  ।।

पांडव को बहला कर के
लाक्षागृह रहने भेज दिया ।
कपटी दुर्योधन इस प्रकार
नया खेल था खेल दिया ।।

षड्यंत्र सफल होता कैसे
विदुर- निति के आगे
पांडव लाक्षागृह जला दिये
स्वयं सुरंग से भागे   ।।

                                                  राजेंद्र प्रसाद  मिश्र

दुर्योधन का अपमान Duryodhan ka apmaan

कर अथक परिश्रम पांडव ने
निज नव गृह -निर्माण किया।
न्योता भेजा था दूर- दूर
दुर्योधन का भी आह्वान किया ।।

कुटिल मंडली साथ लिए
दुर्योधन आया इन्द्र प्रस्थ।
भवन द्वार से कर प्रवेश
पीछे छोडे हाथी- घोडे रथ ।।

जल में थल, थल पर जल का
दुर्योधन को अनुमान हुआ
ईर्ष्या से जलते कुरू ज्येष्ठ का
जल मे गिरकर अपमान हुआ।।

पांचाली बोली अंधे के घर
अंधे ही जन्म  लिया करते
काॅटे से युक्त बबूलो पर
कब आम- अनार उगा करते ?

दुर्योधन भी आग बबूला हो
उत्सव से बाहर चला गया ।
'अपमान का बदला लूँ गा 'कह
इंद्र प्रस्थ से चला गया ।।

दुर्योधन बाहर चला गया
आखों में ज्वाला भरे हुए ।
पांचाली की कटु- मृदुल हॅसी का
चित्रण नयनों में लिए हुए ।।

                                                            राजेंद्र प्रसाद मिश्र

Sunday, January 26, 2014

आलस मत कर ।

कुछ भी कर पर आलस मत कर ।
आलस्य दुश्मन है मानव का 
मन की गति को स्थिर करता
तन की शक्ति क्षीण बनाता
रस भर तन-मन-जीवन मे
संकल्प- विकल्पो से उठकर
कुछ भी कर पर आलस मत कर ।।

डरकर जीना कायरता है
मानव -मन उच्छृंखल है
जिधर मुड़ा बस उधर जुड़ा
मति को मन पर भारी बनकर
जीवन मे गति का मिश्रणकर
कुछ मी कर पर आलस मतकर ।।

चमके सूरज चाँद सितारे
गति के है प्रतिक ये सारे
गति विन जीवन मे दुर्गति है
निश-दिन प्रगति पर चलकर
प्रतिक्षण प्रतिपल आगेको बढ़
कुछ भी कर पर आलस मत कर ।।

त्याग सभी शंसय है जितने
देख गगन मे तारे कितने
तारो सा तू भी चमकेगा
प्रगति पथ पर तू झलकेगा
संशय छोड़ दृढ़ निश्चय कर
कुछ भी कर पर आलस मत कर ।।
             
                                              राजेन्द्र मिश्रा

Sunday, January 19, 2014

इतना करती क्यो प्यार मुझे Itna karati kyo pyar munjhe

इतना करती क्यो प्यार मुझे ।

तुम त्रिवेणी सी पावन हो
हम गाँवो के गंदे नाले ।
सदगंधयुक्त शीतलजल तुम
मधुशाला के हम मधु प्याले।
तुम कितनी चंचल ,हम शांत शुभे !
इतना करती क्यो प्यार मुझे ।।

तुम स्वर्गलोक की सुरबाला
हम मृत्युलोक के वासी है।
तुमको गलबाहो का हार और
हमको प्रिय मथुरा काशी है।
तुम कुसुम-कली,हम काँटे है
इतना करती क्यो प्यार मुझे ।।

तुम चंदन -भीनी खुशबू हो
हम बबूल के फूल प्रिये ।
तुम फैलाती सौरभ चहुँ ओर,
हम काँटो के तीर प्रिये ।
तुम चंचल नयनो वाली हो ,पर
मै शुक्राचार्य प्रिये
इतना करती क्यो प्यार मुझे ।।

तुम  धवल चाँदनी सी निर्मल
मै कालकूट का प्याला हूँ ।
तुम च॓दन सी शीतल हो
मै तप्त अग्नि की ज्वाला हूँ।
मै ग्रीष्म तुम बरसात प्रिये,
तुम आओगी, मै जाऊँगा।
तुमसे कैसे मिल पाऊँगा ।।

                                  राजेन्द्र मिश्रा