धर्म व्यक्ति का बंधन नहीं है ,
धर्म व्यक्ति का आड़ नहीं ।
धर्म व्यक्ति का मार्ग परदर्शक ,
धर्म व्यक्ति का वाड़ नहीं ॥
धर्म व्यक्ति को संबल देता ,
धर्म ज्ञान का मूल है ।
धर्म प्रेम का गीत सिखाता ,
धर्मान्धता शूल है
धर्म नदी के स्रोत सा बहता ,
धर्म जगत का सार है ।
जिसकी अमिय धार से सिंचित,
सारा यह संसार है ॥
सभी धर्म आपस में भाई ,
भाई चारा उनका भाव ।
धर्म नहीं वह धर्मान्धता ,
जिनमे दया प्रेम का अभाव ॥
धर्म जगत का सार है ।
जिसकी अमिय धार से सिंचित,
सारा यह संसार है ॥
सभी धर्म आपस में भाई ,
भाई चारा उनका भाव ।
धर्म नहीं वह धर्मान्धता ,
जिनमे दया प्रेम का अभाव ॥
मानव धर्म से बढ़कर जगत में ,
नहीं है कोई धर्म महान ॥
रक्त मांस मज्जा से निर्मित ,
नश्वर जग में हर इन्सान ।
फिर यह कैसा भेद -भाव है ,
कैसा है यह धर्मोन्माद ।
सभी सुखी हो सभी निरामय ,
फूले फले रहे आबाद ||
राजेंद्र रामनाथ मिश्रा