Sunday, January 30, 2011

बालिका के अरमान

माँ मै भी पढने जाऊँगी ||
पुस्तक ला दो ,कलम मँगा दो,
चाक तथा स्लेट दिला दो,
अच्छे से विद्यालय में,
 मेरा नामांकन करवा दो 
अपना छोटा बस्ता लेकर 
हँसते -गाते आउँगी |
माँ मै भी पढने जाऊँगी ||

पढ़-लिखकर मैं बड़ी बनूँगी ,
भारत माँ की शान बनूँगी,
हिमगिरी का मैं भाल बनूँगी,
भारत ही क्या सारी दुनियां को ,
मैं   ज्ञान   सिखाउंगी |
माँ मै भी पढने जाऊँगी ||

नेता सुभाष की टोपी लेकर,
गांधीजी की शोटी लेकर ,
नेहरु जी का लम्बा कुरता
मेरे  बदन  पर होगा पुरता ,
नेताओं का नेता बन,
दुनियां को राह दिखाउंगी |
माँ मै भी पढने जाऊँगी ||
                                          राजेंद्र रामनाथ मिश्र

Sunday, January 23, 2011

जीवन-पथ

एक सड़क मेरे घर से भी 
 इस जनपथ तक आती है ||

 कभी इधर दायें मुड़ती है
 कभी उधर बाएं मुड़ जाती,
 कभी सफ़र लम्बा लगता है 
 या दूरी खुद कट जाती है | 
एक सड़क मेरे घर से भी 
 इस जनपथ तक आती है ||

जगह -जगह चौराहे आते 
 कई जगह बाज़ार दुकानें 
 कई जगह रुकना पड़ता है 
 कई जगह रफ़्तार बढ़ाना 
 साथ समय के चलते रहने से 
 सारी मुश्किल हट जाती है
 एक सड़क मेरे घर से भी 
 इस जनपथ तक आती है ||

जग में जीवन एक सड़क है 
 एक सफ़र जीवन का प्रतिपल 
एक समस्या हर क्षण बनती 
 और निकल जाता उसका हल 
 हर जीवन में मृत्यु अटल है |
 यही सत्य का मार्ग बताती 
एक सड़क मेरे घर से भी |
 इस जनपथ तक आती है ||
                                    राजेंद्र रामनाथ मिश्र 

Saturday, January 22, 2011

कर्मवीर

जो स्वयं साहसी होते है |
वे आगे बढ़ते  जाते है ||

                       कंटक में चल करके खुद
                       दुनिया को राह बताते है
                       चाहे नेपोलियन को देखो 
                       या नाम सिकंदर का लेलो 
                       नेता सुभाष अब नहीं रहे 
                       पर हमको याद दिलाते है || जो स्वयं ........

 पथ में कितनी बाधाएँ हो 
घेरे  घनघोर घटायें हो 
 फैला समुद्र जल विस्तृत हो 
 ऊँची पर्वत मालाएँ हो 
 पद एक नहीं विचलित होते 
 खुद समय बदलते जाते है || जो स्वयं ......... 

                         जो अपना कर्म नहीं करते 
                         जो झूठी स्वांग सदा भरते
                         जो उम्मीदों के बल बैठे 
                         संघर्षों से घबराते है 
                         गोते तो लगाना मुश्किल है 
                         साहिल पर डूबा करते है || जो स्वयं .........
 जिनका मन भ्रमर नहीं खिचता 
 ललनाओ की तस्वीरों में 
 जो आहत नहीं हुआ  करते 
 सुन्दरियों की दृग तीरों से 
 है वीर पुरुष विरले जग में 
 यश मान सजोयें रखते हैं ||
                            जो स्वयं  साहसी होते है |
                            वे आगे बढ़ते जाते है    || 
  
                                                             राजेंद्र रामनाथ मिश्र

Friday, January 21, 2011

वृक्ष का सन्देश -मनुष्य के नाम

हे ,पवन ! प्रकृति के छंद ,
मंद क्रंदन को ,
आहत -पीड़ित -व्यथित
आह , चिंतन को  ||


स्मरण दिला दो मानव को
उसके कर्त्तव्य प्रकृति के प्रति 
अब नहीं चलेगी अधिक समय
उसकी अभिमानी वक्र गति ||


मै तरु मेरा है हरित रक्त
पर मानव का है रक्त ,रक्त
दोनों में अनिल समान भाव
हँ  दोनों के हो प्राणधार   ||


याद दिला दो मानव को
मै उसे  सदा अर्पित करता
कर्त्तव्य समझ निज जीवन का 
फल- फूल- मूल  डाली-पत्ता 


हे पवन ! मित्र मानव के  
संरक्षक मेरे त्राहि -त्राण  |
तुम दोनों के जीवन स्वरुप 
मनुज-विटप मध्यस्थ प्राण ||


जब विटप-विहीन मही होगी
 मानव का होगा महानाश !
जीवन संभव जग में होगा 
वृक्षों से मिलती रहे साँस  || 
                                      राजेन्द्र   रामनाथ  मिश्र

Sunday, January 16, 2011

सहारा

निरखते नयनों को ,
 तपती धरती को
 विचरती बाला को 
 सुलगती आग को |
                      झलकती परछाई से 
                      बादलों के छाव से 
                      नयन के ठांव से 
                      सहारा मिलता है ||
 थके से राहीको
व्यथित मन को 
विरह की आग को 
सुनसान पथ को 
                   विटप की छाव से 
                    स्वप्न की ठाव से 
                    संदेशे मिलने से 
                    सुबह की आहट से
                    सहारा मिलता है ||
                                             राजेन्द्र रामनाथ मिश्र

Friday, January 14, 2011

आप की राय (हास्य )

किसी के थल्लम -थल्लम पेट
किसी का सूखा तन कंकाल |
किसी के मुरझाये हैं होठ
किसी के चिकने -चुपड़े गाल||

किसी को दाने के लाले ,
किसी का लालो का जयमाल
किसी के लम्बे -चौड़े हाथ  
किसी के बधे हाथ निसहाय ||

 कोई गाता है इंग्लिश सॉन्ग
 कोई करता है हाय-हाय ,
 जगत के कई अनोखे रूप
 आप की अपनी क्या है राय ||

किसी के हाथी जैसे पेट
किसी की भूखे कटती रात
कोई सहता तपती धूप
किसी पर नोटों की बरसात ||

गरीबी है आशा विश्वास 
अमीरी अहंकार की लाश
 जगत   के दो पहलू है खास 
 परन्तु दोनों में  विरोधाभास  ||

किसी का शोषण  करके लोग   
बढ़ाते अपनी खुद  की आय 
आप की अपनी क्या है राय ||
                                       राजेंद्र रामनाथ मिश्र

शिक्षा

एक याचक किसी नगर में,
गया मागने भिक्षा|
सुनिकेतन को देख हुई,
जागृत तीब्र बुभुक्षा |
दरवाजे पर स्थित होकर ,
उसने अलख जगाया,
पर गृह से उसने कोई ,
उत्तर तक न पाया||
खड़ा रहा कुछ  समय सुना
सुन्दर सुमधुर आवाज
प्रभु ,पुत्र एक मुझको देना,
यदि प्रसन्न हो आज ||
भिक्षु सोचा कहाँ आ गया ,
यह खुद एक भिखारी
आगे बढ़ा लिए कर झोली
मन में इच्छा भारी|
अगले गृह का स्वामी भी
सुना रहा निज विपदा |
माँ प्रसन्न हो मुझको देना
विपुल धन सम्पदा ||
एक से बढ़कर एक यहाँ
हैं जग में बड़े भिखारी |
कैसा खेल यहाँ जग में है
प्रभु की इच्छा न्यारी |
मुझे भूख भोजन की है ,
पर उनकी अद्भुत इच्छा
संतुष्टि में ही सुख है
मिली मुझे यह शिक्षा ||
                                  राजेन्द्र रामनाथ मिश्र




Thursday, January 13, 2011

समय का सिलसिला |

सिलसिला यह समय का चलता रहे,
 शामें ढलती रहें, दिन बदलता रहे 
चाँद सूरज बिखेरें सदा रोशनी
व्याप्त भारत में स्वर्णिम रहे चाँदनी|
 स्वर से सिंचित गगन,शक्ति से हो भरा 
 नभ समुन्दर तक फैले हमारी धरा 
 शक्ति -समृधि-सौरभ विखरता रहे
 सिलसिला यह समय का चलता रहे,||

सिर हिमालय का ऊँचा चमकता रहे 
 गंगा यमुना की धाराएँ  बहती रहें 
देश भारत की धरती पर मोती उगे 
 पक्षी कलरव करें ,पुष्प खिलते रहें 
 कन्याकुमारी से कश्मीर तक ,
 तिरंगा सदा ही लहरता रहे |
सिलसिला यह समय का चलता रहे,||

बापू नेहरु के सपने संजोये हुए 
आज साकार हो बस यही कामना 
शिखर समृधि का देश छू ले तभी , 
पूर्ण हो पूर्वजो की सभी कामना 
फैले हरियाली वृक्ष फूलें फलें
मेरे सपनों का भारत सँवरता रहे |
सिलसिला यह समय का चलता रहे ||
                                                     राजेंद्र रामनाथ मिश्र

Wednesday, January 12, 2011

आकांक्षा

मैंने सोचा था मुझको 
सरल मृदुल नव प्यार मिलेगा
धूप से तपती धरती को 
संध्या का आसार मिलेगा 
स्वप्नों में व्याकुल बाला को 
प्रियतम बाँहों का भार मिलेगा |

पर घृणा मिली और मिला अनादर 
बाकी क्या तिरस्कार मिलेगा
मैंने सोचा था क़ि मुझको 
सरल मृदुल नव प्यार मिलेगा ||
                                          राजेंद्र रामनाथ मिश्र

Tuesday, January 11, 2011

मुझे मिट जाने क़ि चाह |

मै  मधुप मेरे मधुमय सरोज
 गहरे जल में उत्पन्न ,सहज
 खिलते ,मुरझाते रोज
 तुम तो प्रतीक सुन्दरता के ,
देखी क्यों तुम जाने की राह |
मुझे मिट जाने की  चाह ||

 मै भ्रमर मीत गीतों का
स्पुटित कमल में बंद आज
 अनुभव करता हूँ ,सुख का |
 जैसे कोई अनुरागी ,बंधा
 मोहपासों में ,करे हलाहल पान
नहीं मर मिटने की परवाह | 
मुझे मिट जाने की  चाह ||

महा अंध  तम में बिता प्रथम प्रहर
कर दूँ विछिन्न इन मंजुल पंखुडियो को 
कर सकता हूँ विद्ध कठोर कास्ट को|
पानी बचा रहे अपना,
लहू क़ी कुछ भी न परवाह |
मुझे मिट जाने की  चाह |

क्या कोमल कलियों को विछिन्न कर ,
विश्वजीत कहलाऊंगा मै?
कलियों  का रस पान किया है मैंने 
यह कुकृत्य कर नाम मिटाऊंगा?
नहीं मिलेगा संबल कोई 
 भरना होगा आह |
 मुझे मिट जाने क़ी चाह ||
                                    राजेंद्र रामनाथ मिश्र


Sunday, January 9, 2011

शिक्षक

शिक्षक देश का आधार होता है |
शिक्षक समाज में "संस्कार" होता है |
शिक्षक नाव  का पतवार होता है |
शिक्षक ज्ञान का भंडार होता है  |
शिक्षक का हर व्यक्ति   पर उपकार होता है |
शिक्षक का कार्य परोपकार होता है |
शिक्षक का जो सम्मान नहीं करता दोस्तों |
उसके जीवन में अंधकार होता है |
                       
                                                                                राजेंद्र रामनाथ मिश्र

हम बच्चे हिंदुस्तान के |

देश हमारा सबसे प्यारा 
 इतना बृहद विशाल है 
 कश्मीर की सुन्दरता भी 
अपनी अजब मिशल है 
 किसमे इतनी हिम्मत है क़ि,
 आँख उठाये आन पे 
 मर जाएँगे मिट जाएँगे 
 हम बच्चे वीर जवान के |
हम बच्चे हिंदुस्तान के ||

अगर खड़ा हो अचल सामने 
 उसे कुचल हम जाएँगे
कदम न अपना रखेंगे पीछे 
 आगे बढ़ते जाएँगे 
 अपना सब कुछ लुटा देंगे हम 
 भारत माँ क़ि शान पे |
हम बच्चे हिंदुस्तान के ||
 शस्य श्यामला भारत माता,
 हरा भरा है अपना आँगन 
 सबके दुखड़े  दूर करेंगे 
 सबके सिर पर होगी छाजन 
कोई नहीं रहेगा भूखा 
हम बच्चे सजग किसान के |
हम बच्चे हिंदुस्तान के ||                          राजेंद्र रामनाथ मिश्र

Saturday, January 8, 2011

गुलसितां हमारा अमर रहे

गुलसितां हमारा अमर रहे ,
हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
                  आजाद भगत की यादों को,
                  हम मन में बसाये फिरते हैं|
 भारत की मिटटी को छू कर,
 अपनी फरियादें करते हैं |
                 गुलसितां हमारा अमर रहे,
                 हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
हरियाली  मिटटी की मुझसे,
 उनकी वह कहानी कहती है |
                  जिनकी सासों में धड़कन में ,
                  बस एक तम्मना बसती है |
गुलसितां हमारा अमर रहे,
हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
                   फूलो की महक चिडियों की चहक,
                    हमें उनकी याद दिलाती है |
 जिसने सिर कटाएँ हँस हँस कर ,
उफ तक न किये गाते-गाते |
                     गुलसितां हमारा अमर रहे,
                    हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
वर्षा की रिमझिम बुँदे भी ,
गुणगान  शहीदों का करती हैं|
                    तितली मंडराती फूलो पर,
                   भौरे गुनगुनाया करते हैं |
गुलसितां हमारा अमर रहे,
हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
                    बच्चों की मुस्काने बरबस ,
                    नेहरु की याद दिलाती हैं |
 बन बाग वाटिका उपवन भी ,
 सौरभ बरसाते गाते हैं  |
                      गुलसितां हमारा अमर रहे |
                      हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
                                                                             राजेंद्र रामनाथ मिश्र
                                     





                

Friday, January 7, 2011

Satya paresan ho sakta hai parntu parajit nahi

सत्य परेशान हो सकता है, परन्तु पराजित नहीं |