गुलसितां हमारा अमर रहे ,
हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
आजाद भगत की यादों को,
हम मन में बसाये फिरते हैं|
भारत की मिटटी को छू कर,
अपनी फरियादें करते हैं |
गुलसितां हमारा अमर रहे,
हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
हरियाली मिटटी की मुझसे,
उनकी वह कहानी कहती है |
जिनकी सासों में धड़कन में ,
बस एक तम्मना बसती है |
गुलसितां हमारा अमर रहे,
हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
फूलो की महक चिडियों की चहक,
हमें उनकी याद दिलाती है |
जिसने सिर कटाएँ हँस हँस कर ,
उफ तक न किये गाते-गाते |
गुलसितां हमारा अमर रहे,
हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
वर्षा की रिमझिम बुँदे भी ,
गुणगान शहीदों का करती हैं|
तितली मंडराती फूलो पर,
भौरे गुनगुनाया करते हैं |
गुलसितां हमारा अमर रहे,
हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
बच्चों की मुस्काने बरबस ,
नेहरु की याद दिलाती हैं |
बन बाग वाटिका उपवन भी ,
सौरभ बरसाते गाते हैं |
गुलसितां हमारा अमर रहे |
हम आज यहाँ ,कल रहें न रहें |
राजेंद्र रामनाथ मिश्र
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