मैंने सोचा था मुझको
सरल मृदुल नव प्यार मिलेगा
धूप से तपती धरती को
संध्या का आसार मिलेगा
स्वप्नों में व्याकुल बाला को
प्रियतम बाँहों का भार मिलेगा |
पर घृणा मिली और मिला अनादर
बाकी क्या तिरस्कार मिलेगा
मैंने सोचा था क़ि मुझको
सरल मृदुल नव प्यार मिलेगा ||
राजेंद्र रामनाथ मिश्र
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