निरखते नयनों को ,
तपती धरती को
विचरती बाला को
सुलगती आग को |
झलकती परछाई से
बादलों के छाव से
नयन के ठांव से
सहारा मिलता है ||
थके से राहीको
व्यथित मन को
विरह की आग को
सुनसान पथ को
विटप की छाव से
स्वप्न की ठाव से
संदेशे मिलने से
सुबह की आहट से
सहारा मिलता है ||
राजेन्द्र रामनाथ मिश्र
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