Friday, January 14, 2011

शिक्षा

एक याचक किसी नगर में,
गया मागने भिक्षा|
सुनिकेतन को देख हुई,
जागृत तीब्र बुभुक्षा |
दरवाजे पर स्थित होकर ,
उसने अलख जगाया,
पर गृह से उसने कोई ,
उत्तर तक न पाया||
खड़ा रहा कुछ  समय सुना
सुन्दर सुमधुर आवाज
प्रभु ,पुत्र एक मुझको देना,
यदि प्रसन्न हो आज ||
भिक्षु सोचा कहाँ आ गया ,
यह खुद एक भिखारी
आगे बढ़ा लिए कर झोली
मन में इच्छा भारी|
अगले गृह का स्वामी भी
सुना रहा निज विपदा |
माँ प्रसन्न हो मुझको देना
विपुल धन सम्पदा ||
एक से बढ़कर एक यहाँ
हैं जग में बड़े भिखारी |
कैसा खेल यहाँ जग में है
प्रभु की इच्छा न्यारी |
मुझे भूख भोजन की है ,
पर उनकी अद्भुत इच्छा
संतुष्टि में ही सुख है
मिली मुझे यह शिक्षा ||
                                  राजेन्द्र रामनाथ मिश्र




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