तुम को गर कुछ सुनना है, सुनो मधुर मधु-गीत प्रिये ।
बाहर जग में कुछ रहा नहीं ,मन मे मन के संगीत प्रिये ।
जग में हिंसाचार बढा, दुख का है अंबार बढा ।
बढ रही समस्या मानव-निर्मित ,लोभ- मोह का भार बढा ।।
अब होड लगी हथियारों की ,बम गोलों की अंगारों की ।
छल दंभ दोष पाषंडो की, दुश्मन के अत्याचारों की ।।
आतंकवाद का राक्षस अब अपना मुँह फैलाया है ।
सारे जग को खा जाने को छद्म वेष में आया है ।।
दानव और देव , इस जग में लडते रहे निरंतर ।
पर दोनों के लक्ष्य -भाव में बहुत बडा है अंतर ।।
दानवों का दर्प दलन दुनिया से जिस दिन होगा ।
आतंकवाद का अंत, विश्व का विजय दिवस वह होगा ।।
, राजेंद्र प्रसाद मिश्र