Monday, January 18, 2016

आतंकवाद का अंत

तुम  को  गर कुछ  सुनना है,  सुनो मधुर मधु-गीत प्रिये ।
बाहर  जग में कुछ  रहा  नहीं ,मन मे मन के संगीत  प्रिये ।
जग में  हिंसाचार बढा,       दुख  का है अंबार  बढा  ।
बढ रही समस्या मानव-निर्मित ,लोभ- मोह का भार बढा ।।
अब होड लगी  हथियारों की ,बम गोलों  की  अंगारों  की ।
छल दंभ दोष पाषंडो की, दुश्मन के  अत्याचारों  की  ।।

आतंकवाद का  राक्षस  अब  अपना मुँह  फैलाया है ।
सारे  जग को खा  जाने  को  छद्म वेष में  आया है  ।।
दानव और  देव , इस जग में  लडते  रहे निरंतर  ।
पर दोनों के  लक्ष्य  -भाव में बहुत  बडा  है अंतर ।।
दानवों  का दर्प दलन दुनिया  से  जिस  दिन  होगा ।
आतंकवाद  का अंत,  विश्व का विजय दिवस वह होगा  ।।
    
                       ,                                                        राजेंद्र प्रसाद मिश्र

Sunday, January 17, 2016

करत - करत अभ्यास से जडमति होत सुजान । Karat - Karat Abhys Se Jadmati Hot Sujan .

                                                                करत  - करत अभ्यास से जडमति होत सुजान ।
                                                                 रसरी आवत जात से  शिल पर परत निशान  ।।
' करत  - करत अभ्यास से जडमति होत सुजान ' सूक्ति से तात्पर्य यह है कि बार बार  अभ्यास  करते  रहने से  मूर्ख व्यक्ति  भी बुद्धिमान  हो जाता है । ' बिना अभ्यासे विषम विद्या  ' अर्थात  अभ्यास के  अभाव में बडे -  बडे  चालाक  व्यक्ति की  बुद्धि  भी कुंठित हो जाती है ।  संस्कृत के  श्रेष्ठ  ग्रंथ  ' लघु सिद्धांत  कौमुदी ' के रचयिता ' बरदराज '  बचपन में  मंदबुद्धि  थे । गुरुकुल  से  उन्हें  इसलिए  निकाल दिया गया  ,  क्योंकि वह  मंदबुद्धि  थे । एक दिन  गुरु  जी ने  बरदराज  से  कहा,  पुत्र ! पढना  लिखना  तुम्हारे  बस का नहीं है ।  अब  तुम  घर  जाकर अपने  पिताजी के  काम में  उनकी मदद  करो । बरदराज  भारी मन स घर के  लिए  प्रस्थान किया  । रास्ते में एक  कुएँ  पर देखा  कि रस्सी  की रगड  से  कुएँ  की जगत पर  निशान पड  गया है । यह  देख  उनके  मन में  बिजली सी कौध गई । उन्होंने  सोचा यदि  कोमल रेशे से बनी हुई  रस्सी  कुएँ  की जगत को काट सकती है तो  बार - बार  के अभ्यास से  मुझे  पढना  लिखना  क्तो नहीं  आ सकता  । इस  विचार के साथ  वह गुरुकुल  लौट  गए और  गुरु जी   से एक  अवसर  और  देने का  आग्रह  किए ।इस प्रकार  सतत अभ्यास के  द्वारा  वे संस्कृत के  महान  विद्वान  बन गए । इस प्रकार  निरंतर  अभ्यास के  द्वारा  हम भी सफलता  प्राप्त  कर सकते हैं ।

Saturday, January 16, 2016

नर हो न निराश करो मन को ।Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko .

मनुष्य  ईश्वर की  सबसे  श्रेष्ठ  कृति है ।  आशा  और  निराशा  उसके  दिमाग  की उपज है । ' नर हो न  निराश करो मन को  ' सूक्ति हमें  जीवन में  निराश न होने  की प्रेरणा  देती है । सफलता  प्राप्त  होने  पर व्यक्ति प्रसन्न होता है  और  असफलता निराशा  लाती है  । असफल  होने  पर  मनुष्य को  निराश नहीं होना चाहिए  । चुनौतियाँ  हमारे  जीवन में  अनेक  होती है । सफल होने पर  न अधिक  प्रसन्न  होना चाहिए  और  असफल  होने पर  अधीर भी नहीं  होना चाहिए ।  मनुष्य  जीवन पाकर  भी यदि  हम निराश  होते हैं  तो  जीना  व्यर्थ  होता है ।  महाभारत के युद्ध में  भगवान  श्रीकृष्ण ने  निराश और अधीर  अर्जुन  से कहा कि हे पार्थ  उठो ,अपना गांडीव  उठाओ तथा  अपने   कर्तव्य  -पालन  में  लग जाओ । यही तुम्हारा धर्म  है । इसी प्रकार  हमें भी  आशा  एवं  विश्वास के साथ अपने  कर्तव्य  -पथ पर  आगे बढना  चाहिए  ।

Friday, January 15, 2016

पर उपदेश कुशल बहुतेरे । Par Updesh kushal bahutere .

'पर उपदेश कुशल बहुतेरे ' सूक्ति से तात्पर्य यह है कि दूसरों को उपदेश  देना  बहुत  आसान है परंतु स्वयं  उस पर  अमल करना टेढी  खीर  होता है । उपदेश  तथा  सलाह  लोग बिना  मागे  ही देते हैं ।हमें  दूसरों को  उपदेश देने के  पहले यह सोचना चाहिए कि हम  उसपर  कितना  अमल करते हैं  ।एक बार  एक महिला  अपने  छोटे बेटे को लेकर  महात्मा गांधी के  पास  गयी  और  बोली - महात्मा जी  ,मेरा  बेटा  मीठा  बहुत  खाता है ।  आप  इसे  समझाइए । महात्मा गांधी  बोले  -  अगले  सप्ताह  आना , मैं इसे  समझा  दूँगा । वह  महिला  बच्चे को  साथ लेकर  अगले  सप्ताह  फिर  आयी । गांधी जी ने  बच्चे  से  कहा  - बेटा  मीठा  ज्यादा  मत खाया  करो ।बच्चे  ने कहा,  - ठीक है अब मैं  मीठा  कम खाऊँगा  । यह  बात  सुनकर वह  महिला बोली ।यह बात  तो  आप पिछली  बार  भी  कह सकतेथे । यह  सुनकर  गांधी  जी ने कहा कि उस समय  मै खुद  मीठा  अधिक  खाता  था  तो  इस  बच्चे को  कैसे  न खाने की  सलाह  देता  । यह सुनकर  महिला  अवाक रह गई  । अतः  हमें भी किसी को  उपदेश  या सलाह  देने के  पहले  उस बात  पर  अमल करना  चाहिए  जो हम  दूसरों को करने  को  कहते हैं ।

Friday, January 8, 2016

मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ।(अनुच्छेद )

किसी भी  कार्य  को  करते समय  व्यक्ति को  दुविधा  का  भाव  मन में  नहीं  लाना  चाहिए  । जो  लोग इस  प्रकार  सोचते हैं कि मैं  यह कार्य कर  पाऊँगा  या नहीं  कर  पाऊँगा  ,यदि  नहीं  कर  पाया  तो  क्या होगा ? इस  प्रकार  का विचार  भी व्यक्ति  मे निराशा  का  भाव पैदा कर  देता है  जो  उसकी  एकाग्रता  को भंग  करता है ।  एकाग्रता के  भंग होने  से  कार्य  मे  सफलता  नहीं मिलती है । इसके  विपरीत  दृढ निश्चय  के द्वारा  मनुष्य  की एकाग्रता  बलवती  होती है  जिसके  परिणाम स्वरूप  सफलता  उसके  कदम  चूमती है ।  दृढ संकल्प  सफलता का  आधार है ।  दृढ संकल्प  कर लेने के  पश्चात  व्यक्ति के  मन में  असफलता का  विचार  भी नहीं  आता  बल्कि  वह पूर्ण   प्रयास  एवं  शक्ति के साथ  जीत अर्थात  सफलता  की  तरफ  अग्रसर  होता है  । महाभारत के युद्ध में कर्ण के  सारथी  शल्य  थे  जो कर्ण को बार -बार यह कहते  थे कि वह  अर्जुन  से जीत  नहीं  सकता  , जिसका  परिणाम  यह हुआ कि  कर्ण हतोत्साहित  होता  गया और
अंततः उसकी  हार  हुई  । इसी प्रकार  व्यक्ति  जिस प्रकार का  विचार  अपने  मन में  लाता है उसी प्रकार का  परिणाम  उसके  जीवन में उसे मिलता है  अर्थात  मन के  हारे हार है, मन के जीते जीत  ।

Friday, January 1, 2016

नया साल कैसा होगा ।

नया साल  कैसा होगा  ?

खुशियों का संसार  लिए  ।
            जग में सुख का  अंबार लिए ।
                   विश्व - बंधुओं के  जीवन में ,
                             नवल- मृदुल -नव -प्यार  लिए

यह नया साल  ऐसा  होगा  ।

दुख-दर्द  भूल जाएंगे  सब ,
       हो प्रसन्न  सुख देगें  रब
                 पूरी  सब की इच्छा  होगी,
                          माँ - बहबहनों की  रक्षा  होगी

भय - मुक्त - स्वच्छ  यह जग होगा  ।
यह   नया  साल  ऐसा।  होगा  ।।

आतंकवाद  का  अंत  भला  ,
            जन- जन ने  आज  पुकारा  है ।
                ' आतंक- रहित  होगी  दुनिया "
                               यही  विश्व  का  नारा  है ।

आतंक- मुक्त  यह जग होगा ।
नया साल  ऐसा होगा  । ।

जग के युवा  ने ठान लिया,
        अपना अस्तित्व  पहचान  लिया  ।
                      मेरी  भी यही  अभिलाषा है  ।
                                 ' सब पढें -  बढे ' यह आशा है ।

नववर्ष  सुखद  सब का होगा ।
  नया साल  ऐसा होगा ।  ।