किसी भी कार्य को करते समय व्यक्ति को दुविधा का भाव मन में नहीं लाना चाहिए । जो लोग इस प्रकार सोचते हैं कि मैं यह कार्य कर पाऊँगा या नहीं कर पाऊँगा ,यदि नहीं कर पाया तो क्या होगा ? इस प्रकार का विचार भी व्यक्ति मे निराशा का भाव पैदा कर देता है जो उसकी एकाग्रता को भंग करता है । एकाग्रता के भंग होने से कार्य मे सफलता नहीं मिलती है । इसके विपरीत दृढ निश्चय के द्वारा मनुष्य की एकाग्रता बलवती होती है जिसके परिणाम स्वरूप सफलता उसके कदम चूमती है । दृढ संकल्प सफलता का आधार है । दृढ संकल्प कर लेने के पश्चात व्यक्ति के मन में असफलता का विचार भी नहीं आता बल्कि वह पूर्ण प्रयास एवं शक्ति के साथ जीत अर्थात सफलता की तरफ अग्रसर होता है । महाभारत के युद्ध में कर्ण के सारथी शल्य थे जो कर्ण को बार -बार यह कहते थे कि वह अर्जुन से जीत नहीं सकता , जिसका परिणाम यह हुआ कि कर्ण हतोत्साहित होता गया और
अंततः उसकी हार हुई । इसी प्रकार व्यक्ति जिस प्रकार का विचार अपने मन में लाता है उसी प्रकार का परिणाम उसके जीवन में उसे मिलता है अर्थात मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ।
Friday, January 8, 2016
मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ।(अनुच्छेद )
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Very nice and cool my bro
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