Saturday, January 16, 2016

नर हो न निराश करो मन को ।Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko .

मनुष्य  ईश्वर की  सबसे  श्रेष्ठ  कृति है ।  आशा  और  निराशा  उसके  दिमाग  की उपज है । ' नर हो न  निराश करो मन को  ' सूक्ति हमें  जीवन में  निराश न होने  की प्रेरणा  देती है । सफलता  प्राप्त  होने  पर व्यक्ति प्रसन्न होता है  और  असफलता निराशा  लाती है  । असफल  होने  पर  मनुष्य को  निराश नहीं होना चाहिए  । चुनौतियाँ  हमारे  जीवन में  अनेक  होती है । सफल होने पर  न अधिक  प्रसन्न  होना चाहिए  और  असफल  होने पर  अधीर भी नहीं  होना चाहिए ।  मनुष्य  जीवन पाकर  भी यदि  हम निराश  होते हैं  तो  जीना  व्यर्थ  होता है ।  महाभारत के युद्ध में  भगवान  श्रीकृष्ण ने  निराश और अधीर  अर्जुन  से कहा कि हे पार्थ  उठो ,अपना गांडीव  उठाओ तथा  अपने   कर्तव्य  -पालन  में  लग जाओ । यही तुम्हारा धर्म  है । इसी प्रकार  हमें भी  आशा  एवं  विश्वास के साथ अपने  कर्तव्य  -पथ पर  आगे बढना  चाहिए  ।

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