Saturday, February 21, 2015

हमारे त्योहार (अनुच्छेद)

भारत त्योहारों का देश है। यहाँ अनेक त्योहार मनाये जाते हैं जैसे- होली,  दिवाली, ईद, क्रिसमस,  पतेती इत्यादि।इसके अलावा अलग- अलग ऋतुओं के अलग-अलग त्योहार हैं ।यहाँ दो प्रकार के त्योहार मनाये जाते हैं ।राष्ट्रीय त्योहार तथा धार्मिक त्योहार ।भारत के मुख्य राष्ट्रीय त्योहार स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस तथा गांधी - जयंती हैं। राष्ट्रीय त्योहार पूरे भारत वासी हर्ष और उल्लास से मनाते हैं। सभी धर्मों के अलग त्योहार हैँ परन्तु यहाँ सभी लोग इन्हें आपस में मिल-जुल कर मनाते हैं।लोगों की अलग अलग भाषा, संस्कृति और वेषभूषा है, लेकिन सभी यहाँ भाईचारे के साथ मिलकर रहते व काम करते हैं ।

                       त्योहार  हमारे जीवन में खुशियां लेकर आते हैं।लोगों में भाईचारा तथा मेल मिलाप भी बढता है।देश की अखंडता तथा एकता को भी बल मिलता है।लोगों के मन में उमंग तथा उत्साह का संचार होता है । इस प्रकार त्योहार का हमारे जीवन में बहुत उपयोगी हैं ।
 

Friday, February 13, 2015

परहित सरिस धर्म नहिं भाई ।(अनुच्छेद )

'परहित सरिस धर्म नहिं भाई 'का अर्थ है कि दूसरों की भलाई के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है । जो व्यक्ति दूसरों को सुख पहुचाता है, दूसरो की भलाई कर के प्रसन्न होता है, उसके समान संसार में कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं है । महर्षि दधीचि ने देवराज इंद्र को अपना अस्थि- पंजर दे दिया था, जिसका उपयोग करके इंद ने दानवों का बध किया था । महाराज शिवि ने अपने शरीर का मांस एक निरिह पक्षी की रक्षा के लिए अर्पित कर दिया था।इस तरह दूसरों की भलाई के लिए किए गए कार्य के द्वारा व्यक्ति को पुण्य के साथ - साथ यश भी प्राप्त होता है । परोपकार द्वारा विश्व में एकता तथा मानवता का विकास  होता है । लोग जाति तथा धर्म से ऊपर उठकर एक - दूसरे के करीब आते हैं,  जिससे भाईचारे तथा विश्व वंधुत्व की भावना का विकास होता है । इस तरह दूसरे को सुख देने जैसा नेक कार्य  इस दुनिया में नहीं है तथा दूसरे को पीडा पहुचाने जैसा निषिद्ध कार्य भी इस दुनिया में दूसरा नहीं है ।

Thursday, February 12, 2015

भ्रष्टाचार(अनुच्छेद)

भ्रष्टाचार एक ऐसी सामाजिक कुरीति है जो किसी भी देश या समाज को पतन के गर्त में ले जा सकता है ।जब समाज को राजनैतिक भ्रष्टाचारियो की मदद मिल रही हो , तो वह पंक्ति याद आती है- 'हर शाख पर उल्लू बैठे हो, अनजामे गुलिस्ताँ क्या होगा ।' भ्रष्टाचार रूपी जहर  के प्रभाव से बचने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। आज बडे अधिकारी से लेकर एक सामान्य लिपिक तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं । समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हुआ है जिससे लोगों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं है । देश को इस समय ईमानदार नेता, अधिकारी तथा समाज- सेवक की जरूरत है । वैसे तो बहुत से भ्रष्ट नेता, अधिकारी, तथा कर्मचारी ईमानदारी का ढोग करके जनता के बीच आएगें पर हमें उनसे सावधान रहने की जरूरत है ।सबसे बडी जिम्मेदारी तो उन लोगों की है जो भ्रष्टाचार के शिकार हो रहे हैं।भ्रष्टाचार  से लडाई में और इससे मुक्ति पाने में देरी हो सकती है पर यह असंभव नहीं है । जरूरत है देशवासियों के मनोबल एवं जज्बे की, जो भ्रष्टाचारियो को सबक सिखा सके।समाज, परिवार तथा देश में संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों के विकास पर बल देकर देश से भ्रष्टाचार का उन्मूलन किया जा सकता है ।

जब आए संतोष धन सब धन धूरि समान(अनुच्छेद)

मनुष्य के जीवन में सुख और शांति की शुरुआत संतोष की नीव पर ही होती है ।जब तक व्यक्ति के मन में संतोष नहीं आता तब तक वह सुख का अनुभव कर ही नहीं सकता । व्यक्ति के पास जो कुछ भी अपना है या अपने पास है, उसी में सुख का अनुभव करना संतोष कहलाता है ।मानव की अभिलाषा अनंत है। व्यक्ति उन्हें पाने के लिए प्रयास करता है। इस प्रकार एक के बाद दूसरी इच्छा जन्म लेती है तथा मनुष्य महत्वाकांक्षी हो जाता है। महत्वाकांक्षी व्यक्ति कभी सुखी हो ही नहीं सकता । वह सदैव तनावपूर्ण जीवन जीता हुआ बीमारियों का शिकार होता है । इस तरह संतोष के बिना सुख संभव नहीं होता । बढती महत्त्वाकांक्षा के साथ  अपराध  बढते है  -  जैसे कि  चोरी  ,डकैती, , तस्करी  एवं  भ्रष्टाचार  । जहाँ संतोष है वहाँ लालच का कोई स्थान नहीं ।सुख के लिए व्यक्ति के मन मे त्याग तथा परोपकार का होना आवश्यक है ।किसी कवि ने ठीक  कहा है कि -

                               गोधन ,गज धन ,वाजिधन और रतनधन खान ।
                                जब आए संतोष धन ,सब धन धूरि समान  ।।

Saturday, February 7, 2015

महामंत्र

                                       देवकी-सुत गोविन्दम् वासुदेव जगत्पते ।
                                        देहि मे तनयं कृष्णम् त्वामहम् शरणागता ।।

    संतानहीन दंपति यदि इस मंत्र का सच्ची श्रद्धा से जाप करते हैं,  या किसी आचार्य से करवाते हैं तो भगवान श्रीकृष्ण की
कृपा से उनकी मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है ।
          
                                                                        जय श्री कृष्ण