Thursday, November 27, 2014

Tum kavita ham (mai) sangit priye -तुम कविता हम संगीत प्रिये ।

तुम कविता हम संगीत प्रिये ।
तुम वसंत हम गीत प्रिये  ।।

हम वंशी तुम समीर प्रिये,
तुम प्राण हम शरीर प्रिये ।
तुम राग - द्वेष से परे, हम
माया के बंधन में जकडे ।

तुम वसंत हम शीत प्रिये,
तुम कविता हम संगीत प्रिये ।।

तुम सुंदर सुमन सुगंधित,
हम पतझड से युक्त प्रिये,
तुम कविता की अविरल धारा
हम लय -ताल -वद्ध संगीत प्रिये,

तुम कविता हम संगीत प्रिये ।
तुम वसंत हम गीत प्रिये ।।

                                      राजेंद्र मिश्रा

Thursday, November 13, 2014

लाक्षागृह का निर्माण Lakshagrih ka nirman

दुर्योधन शकुनि की चाल बडी
दोनों ने मिलकर युक्ति गढी   ।
जो गुड देने से मर जाए
उसको क्यों जहर दिया जाए।।

विरोचन को आज्ञा दें दी
लाक्षागृह का निर्माण करो ।
पांडव का काल निकट आया
अंत्येष्टि का इंतजाम करो  ।।

पांडव को बहला कर के
लाक्षागृह रहने भेज दिया ।
कपटी दुर्योधन इस प्रकार
नया खेल था खेल दिया ।।

षड्यंत्र सफल होता कैसे
विदुर- निति के आगे
पांडव लाक्षागृह जला दिये
स्वयं सुरंग से भागे   ।।

                                                  राजेंद्र प्रसाद  मिश्र

दुर्योधन का अपमान Duryodhan ka apmaan

कर अथक परिश्रम पांडव ने
निज नव गृह -निर्माण किया।
न्योता भेजा था दूर- दूर
दुर्योधन का भी आह्वान किया ।।

कुटिल मंडली साथ लिए
दुर्योधन आया इन्द्र प्रस्थ।
भवन द्वार से कर प्रवेश
पीछे छोडे हाथी- घोडे रथ ।।

जल में थल, थल पर जल का
दुर्योधन को अनुमान हुआ
ईर्ष्या से जलते कुरू ज्येष्ठ का
जल मे गिरकर अपमान हुआ।।

पांचाली बोली अंधे के घर
अंधे ही जन्म  लिया करते
काॅटे से युक्त बबूलो पर
कब आम- अनार उगा करते ?

दुर्योधन भी आग बबूला हो
उत्सव से बाहर चला गया ।
'अपमान का बदला लूँ गा 'कह
इंद्र प्रस्थ से चला गया ।।

दुर्योधन बाहर चला गया
आखों में ज्वाला भरे हुए ।
पांचाली की कटु- मृदुल हॅसी का
चित्रण नयनों में लिए हुए ।।

                                                            राजेंद्र प्रसाद मिश्र