कर अथक परिश्रम पांडव ने
निज नव गृह -निर्माण किया।
न्योता भेजा था दूर- दूर
दुर्योधन का भी आह्वान किया ।।
कुटिल मंडली साथ लिए
दुर्योधन आया इन्द्र प्रस्थ।
भवन द्वार से कर प्रवेश
पीछे छोडे हाथी- घोडे रथ ।।
जल में थल, थल पर जल का
दुर्योधन को अनुमान हुआ
ईर्ष्या से जलते कुरू ज्येष्ठ का
जल मे गिरकर अपमान हुआ।।
पांचाली बोली अंधे के घर
अंधे ही जन्म लिया करते
काॅटे से युक्त बबूलो पर
कब आम- अनार उगा करते ?
दुर्योधन भी आग बबूला हो
उत्सव से बाहर चला गया ।
'अपमान का बदला लूँ गा 'कह
इंद्र प्रस्थ से चला गया ।।
दुर्योधन बाहर चला गया
आखों में ज्वाला भरे हुए ।
पांचाली की कटु- मृदुल हॅसी का
चित्रण नयनों में लिए हुए ।।
राजेंद्र प्रसाद मिश्र
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