Thursday, February 12, 2015

भ्रष्टाचार(अनुच्छेद)

भ्रष्टाचार एक ऐसी सामाजिक कुरीति है जो किसी भी देश या समाज को पतन के गर्त में ले जा सकता है ।जब समाज को राजनैतिक भ्रष्टाचारियो की मदद मिल रही हो , तो वह पंक्ति याद आती है- 'हर शाख पर उल्लू बैठे हो, अनजामे गुलिस्ताँ क्या होगा ।' भ्रष्टाचार रूपी जहर  के प्रभाव से बचने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। आज बडे अधिकारी से लेकर एक सामान्य लिपिक तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं । समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हुआ है जिससे लोगों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं है । देश को इस समय ईमानदार नेता, अधिकारी तथा समाज- सेवक की जरूरत है । वैसे तो बहुत से भ्रष्ट नेता, अधिकारी, तथा कर्मचारी ईमानदारी का ढोग करके जनता के बीच आएगें पर हमें उनसे सावधान रहने की जरूरत है ।सबसे बडी जिम्मेदारी तो उन लोगों की है जो भ्रष्टाचार के शिकार हो रहे हैं।भ्रष्टाचार  से लडाई में और इससे मुक्ति पाने में देरी हो सकती है पर यह असंभव नहीं है । जरूरत है देशवासियों के मनोबल एवं जज्बे की, जो भ्रष्टाचारियो को सबक सिखा सके।समाज, परिवार तथा देश में संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों के विकास पर बल देकर देश से भ्रष्टाचार का उन्मूलन किया जा सकता है ।

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