इतना करती क्यो प्यार मुझे ।
तुम त्रिवेणी सी पावन हो
हम गाँवो के गंदे नाले ।
सदगंधयुक्त शीतलजल तुम
मधुशाला के हम मधु प्याले।
तुम कितनी चंचल ,हम शांत शुभे !
इतना करती क्यो प्यार मुझे ।।
तुम स्वर्गलोक की सुरबाला
हम मृत्युलोक के वासी है।
तुमको गलबाहो का हार और
हमको प्रिय मथुरा काशी है।
तुम कुसुम-कली,हम काँटे है
इतना करती क्यो प्यार मुझे ।।
तुम चंदन -भीनी खुशबू हो
हम बबूल के फूल प्रिये ।
तुम फैलाती सौरभ चहुँ ओर,
हम काँटो के तीर प्रिये ।
तुम चंचल नयनो वाली हो ,पर
मै शुक्राचार्य प्रिये
इतना करती क्यो प्यार मुझे ।।
तुम धवल चाँदनी सी निर्मल
मै कालकूट का प्याला हूँ ।
तुम च॓दन सी शीतल हो
मै तप्त अग्नि की ज्वाला हूँ।
मै ग्रीष्म तुम बरसात प्रिये,
तुम आओगी, मै जाऊँगा।
तुमसे कैसे मिल पाऊँगा ।।
राजेन्द्र मिश्रा
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