आज हमारा हो न हो ,
कल की मेरी बारी
हम क्या तुम क्या ,
अटल सत्य यह
देखे दुनिया सारी ||
कई बार दुर्दिन देखे हैं
विष के घूंट पिए है ,
दुःख- सुख में समभाव बनाकर
जीवन सदा जिए हैं ||
लोभ -मोह, छल-दंभ-द्वेष-
से क्या तुम कर पाओगे
मृत्यु प्रधान जगत में न-
कुछ लाये थे ,न ले जाओगे ||
सत्य -अहिंसा -ज्ञान -मान-
सम्मान सभी ये बातें ,
प्रेम-दया और सहानुभूति
इस जग की हैं सौगातें ||
राजेंद्र रामनाथ मिश्र
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