एक व्यक्ति जीवन मे खूब धन कमाया । वह भक्षाभक्ष माँस- मदिरा का सेवन करता।इसके लिए उसे जीवो की हत्या करनै मे कोई संकोच नही थी। इस तरह क्ई वर्ष बीत गए । एक बार वह बहुत बीमार पड गया। डाक्टरो, वैद्यो ने उसे ठीक करने का बहुत प्रयास किया पर वह ठीक न हुआ।अंत मे उसने अपनी पत्नी तथा बच्चो को बुलाकर कहा- " मै मरना नही चाहता , मेरे शव को सभाँलकर रखना। किसी अच्छे ताँत्रिक से उसमे पुनः प्राण फूँकवा देना।"
पत्नी तथा बच्चो ने वैसाही किया। मरणोपरांत शव सुरक्षित रखा गया । कुछ दिनो बाद एक संत आए।सारी बात सुनकर संत ने कहा -सबसे पहले हमे यह देखना होगा कि वह जीव कहाँ पैदा हुआ है।उस जीव को उस शरीर से निकालकर इस शरीर मे डालना पडेगा। इसके लिए उस शरीर की हत्या करनी पडेगी। यह पाप मै नही कर सकता। पत्नी ने कहा -यह काम मै करूगी। संत ने कहा- तुम्हारे पति का पुनर्जन्म इसी बगीचे मे एक शुक- शावक के रूप मे हुआ है, जो अभी पिछले हप्ते अंडे से बाहर आया है। वह उड नही सकता पर फुदक सकताहै। खुश होते हुए बोली - तब तो उसे मारना और भी आसान हो जाएगा। पत्नी सीढी लेकर बगीचे मे पहुच गयी।सीढी के सहारे घोसले तक पहुँचकर जैसेही शिशु की गर्दन पकडना चाहा वह फुदककर समीप की डाल पर चला गया। भयभीत शावक जान बचाने के लिए एक डाल से दूसरे डाल पर फुदकता रहा। यह देख संत ने कहा- देवि इसी तरह तुम्हारे पति मृत्यु से डरकर मरना नही चाहते थे। जीव अपने कर्मो का फल भोगने के लिए दूसरा जन्म लेता है।
मनुष्य को दीर्घायु होने के लिए वेद- विदित नियम- हितभुक, मितभुक तथा ऋतभुक का पालन करना चाहिए। संत की बात सुनकर सबका भ्रम दूर हो गया।
Saturday, November 2, 2013
दीर्घायु बनने का मंत्र - (जिजीविषा)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment