Sunday, February 6, 2011

चिट्ठी

मुझे एक चिट्ठी मिली ,
मेरी लिखी ,
मैंने पढ़ा ,
मै खो गया उस पत्र में ,
अतीत के अगाध सागर में |

आज भी लोग पत्र लिखते है 
अपने अतीत को सहेजते हैं
बच्चे स्कूल में पढ़ते है 
चिट्ठी लिखते हैं 
लिखना सीखते हैं 
किसे भेजते हैं 
इसका पता नहीं 
वे डाकखाने का मुंह तक नहीं देखती ,
वे निरुत्तर चिट्ठियां .
किसी से कुछ न बोलती हैं 
परीक्षा में उन्हें अंक तोलती हैं ||

अब तो लोग,
बिना पेपर लिखते हैं 
डाक की बजाय
इन्टरनेट से भेजते हैं , 
ए मूक चिट्ठियां आपस में कुछ न बोलती हैं ,
बोलती तो वे पहले भी न थीं ,
उन्हें देख लोग वांचते थे , 
अपने इष्ट तथा अभिन्न की 
 छवि उसमे देखते थे ||

                         राजेंद्र रामनाथ मिश्र

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