'समरथ को नहिं दोष गोसाईं ' सूक्ति से यह तात्पर्य है कि जो व्यक्ति ताकतवर है उसकी गलतियों को लोग नही देखते या देखकर भी ध्यान नहीं देते क्योंकि उसका वे कुछ कर नहीं सकते हैं । एक थानेदार किसी सामान्य नागरिक की गलती पर उसके साथ जैसा बर्ताव करता है, उस तरह का बर्ताव वह किसी राजनेता के साथ, उससे बडी गलती पर भी नहीं करता , जबकि कानून सबके लिए एक ही होता है । एक राजा थे । उनका एक बेटा था । बेटा गुरुकुल में पढता था । उसी गुरुकुल में अन्य बाबालक भी पढते थे । गलती राजा का बेटा करता ,सजा दूसरे वच्चे को मिलती । यही नहीं, बल्कि अच्छा कार्य दूसरे बच्चे करते , पुरस्कार राजा के लडके को मिलता था । एक दिन सभी बच्चे मुख्य आचार्य से शिकायत करने गए, मुख्य आचार्य ने उन्हें समझाते हुए कहा, - बच्चों देखो ,क्या तुममें से पहले कभी किसी शेर की बलि चढाते देखा है ? जिस तरह केवल बकरे की बलि दी जाती है, उसी तरह समर्थ लोगों की गलती नहीं किसी को भी नहीं दिखाई देती है । अर्थात समरथ के नहि दोष गोसाईं ।
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