Friday, May 13, 2016

समरथ को नहिं दोष गोसाईं ।

'समरथ को नहिं दोष गोसाईं ' सूक्ति  से यह तात्पर्य है कि  जो व्यक्ति  ताकतवर है  उसकी  गलतियों को  लोग  नही देखते  या देखकर  भी ध्यान  नहीं  देते क्योंकि  उसका  वे कुछ  कर नहीं सकते हैं । एक  थानेदार  किसी  सामान्य  नागरिक  की गलती पर उसके  साथ  जैसा बर्ताव करता है,  उस तरह का बर्ताव  वह किसी  राजनेता के साथ,  उससे बडी  गलती  पर भी  नहीं  करता  , जबकि  कानून  सबके लिए एक ही  होता है । एक राजा  थे । उनका  एक बेटा  था । बेटा  गुरुकुल में  पढता था  । उसी गुरुकुल में   अन्य  बाबालक  भी पढते थे  । गलती  राजा  का बेटा  करता  ,सजा  दूसरे  वच्चे को मिलती । यही नहीं, बल्कि  अच्छा  कार्य  दूसरे  बच्चे   करते  , पुरस्कार राजा  के  लडके  को मिलता था  ।  एक दिन  सभी  बच्चे  मुख्य  आचार्य  से शिकायत  करने  गए,  मुख्य  आचार्य ने  उन्हें  समझाते हुए कहा,  - बच्चों  देखो ,क्या  तुममें  से पहले  कभी  किसी  शेर की  बलि  चढाते  देखा है  ? जिस तरह   केवल बकरे की  बलि दी जाती है,  उसी तरह  समर्थ लोगों की  गलती नहीं  किसी को भी नहीं  दिखाई देती है । अर्थात  समरथ के  नहि दोष गोसाईं  ।

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